सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में भारतीय जीवन | Sanskritik Pariprekshya Mein Bhartiya Jivan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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होनहार विश्वान के होत चौींकने पात मदनमोहन के जोवत की भाँवी पा लेने पर किसी को भी यह मानने में सतोच न होगा कि उनवा 'मदनमोहन' नाम भी किसी दवो प्रेरणा का ही फल हू | परम भागवत बैष्णव परिवार में भगवान्‌ कृष्ण का साम छोडकर दूसरा कोइ माम टिकने ही बया लगा, वि तु मदनमोहन 'किसी' ददी शवित के भैते हुए भाए थे और इसीलिए इहें बढा मधु( प्रौर वोमल नाम मिला, वैसा ही कोमल जसा मदन झौर वैता ही मधुर जँसी मिसरी । यद्यदविभूतिमत्सत्त्व थरीमदुजितमेव वा । तत्तदेवावग तब्य मम तेजाशसम्भवम ॥ [ उसार में जितागा भो कुध विभूतिमान, श्रीमान भौर ऊजस्वित है उस सबको मरे तेज के भश से उत्पन्न समझो । ] भगवान्‌ श्रीकृष्ण के इस कथा के भतुसार महामता मालवोयणी भी भगवान के राक्षात 'तेजीशसम्मव' ही थे! “प्रदनभेहन!--शब्द एक वार मुँह से उच्चारण पबरनें मात्र से ही जान पढगा कि झापकी रखता पवित्र हो गई है, जो हलवा हो गया ह भौर मुह की कडवाहट जाती रही हैं। एक उद्द कवि नें एप धार सच कहा था +- है मदयमोहन मेरी मनकांका मजमू | कया भजब इस नाम में जादू भरा ह॥ जात पडता हू पढिडित ब्रजताय व्यासजों का 'बालित मघुरम्‌! की धारा मे यह नाम भी प्रा गया होगा, जिस लेकर उहान प्रपन पुत्र यो नाम प्रतिष्ठा की । माता की गोद से हँस-खेलकर बालक मदनमोहन ने झपने पैरा पर सा हाना प्रारम्भ किया भौर धोरे घोरे बालक बडा हाने लगा । इनवे' परिवार को चाल हैं. वि जब धर म ध्याह पढ़ता ह तो “माय' बठती हैं. भौर सभो वालका का मुएडन हा जाता है। इसो कारण वभी दो वर्ष पर, कमी छह महीने पर या वमीलमी तीप महीने में हो बालक मु जाते हैं । वस, ऐसे हो एक प्रवसर पर मदन मोहन का भो मुण्डन हो गया । परणिदत ब्रजनायजी ने पपने पुत्रा यो शिक्षा देने में यह भूल नहीं को थो जा श्राजवल प्रधिष्ताश लोग किया करत हैं) पुराव पणिइता के समान उन्हाने भपने बच्चा का पहले घर पर ही सस्कृत पढ़ा , शिष्टाचार शो सोस दी भोर तब वही उरहें घर से दाहर पैर रपने दिया | उसका फप यह हुमा वि बाहरी जग बाय उत्हें न लग सको । धाजनल के माँ दाप धपने बच्चा को देख रेख बेगार सममते है धोर उदबो, जिठनो शीघ्र होता है पौँत मूँल्‍्दर किसो धवाडो भध्यापक था विसी विधालय दे




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