विक्रान्त कौरवम | Vikranta Kaurava
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
301
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(स्क्)
अन्न नाटके प्रवर्तको नाम प्रस्तावनाभेढ. तल्नक्षणम् -
काल प्रइत्तमाशित्य सूतरघूमू यत्र वर्णयेत्
तदाश्रयश्व॒पात्रस्य. प्रवेशस्तत्मवरतकम् ॥
नायकलक्षयम्--
स्यागी कृता कुलीन सुश्रोकों रूपयोवनोत्साही [
दछ्ोइनुस्कलाकस्वेजा वैदग्प्यशालवान्नेता 1
नायकभेदा---
घीरोदाचो घोरोद्धतस्तथा घोरललितश्व ।
घीरप्रशान्त इत्ययमुक्त प्रथमश्तुर्मेद ॥
इह नाटके जयकुमारों घीरललितस्तस्य लक्षणम्--
निश्चिन्तो मुदुरनिश क्लापरो घीरललितः स्यात् |
विदूषकस्य लक्षणम्--
कुसुमवसन्ताद्यमिष कमवुवेपभाषायों
हास्यकर* कलहरतिर्विदूषक; स्पाल््वक्मेत्ञ ॥
विष्कम्मलक्षणम्--
दुतवर्तिष्यमाखानाँ कयशाना निदर्शक |
संदिष्वायंस्वु विष्कम्म श्रादावद्धस्य॑ दर्शित ॥
मध्येन मध्यमाम्ध वा पात्रास्वा सप्रयाजित |
थुद्ध स्पात्स तु सकीर्णो नीचमध्यमकल्पित, ॥|
प्रवेशकलक्षणम्--
अवेशको<5नुदात्तोक्या. नीचपात्रप्रयोजितः ।
अज्लृद्यान्तर्विज्ेय: शे्ष॑ विष्कस्मके यया ॥
“विटलत्षणमू-- था
संमोगदोनसम्पद्धिटस्तु घूते क्लैकदेशज् |
चेशोपचारकुशलो वाग्मी मधुरोइय बहुमतो गोष्ठबाम् ॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...