रचना विचार भाग २ | Rachna Vihar Part-ii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चर्णनात्मक अवन्ध । 1 याली पूँछ बहुत छोटी होती दै । चिपते पाँच के नीच गद्दी सा मास का लॉदा होता है श्र 'डसमें ,नश शोर कटे पुर होते है । देह का रइ कुछ पीलापन लिये मच्याला होता है | पक बेदव जानवर है। बंठने उठने से इसके घुटने शोर छाती में घट्टा पड जाता हैं ! वासस्पान--यहट एशिया और धव्यक्रिका महादेश फे उपप- प्रघान धरदेश का जन्‍्तु हैं। यह अरेबिया, बक्ट्रिया, तनिथ्रत आर चौन में भी होता है । अन्यान्य म्पानों में सी साधारणन पाया ज्ाता एँ स्वभाव और गुण--यट बडा ही शान्त प्रकृति का होता है| घास-पान शाता है। खज्र और बदूर ये कॉँटों तय गया डालता है। लोग फद्ते हैं कि इसकी माफ की हया से परदे कोमल हो जाते है । यह पागुण फरता दूँ । इसका मुंश चताना खर्प-पर शैंसी सी शानों ६1 हमेशा लबघलब शिया करता ६ । अगर इससे कोई दुर्यपातार करे ते उसे ब्रटुत दिन तप खयात फेर यदला लेता है। डू थ्ँ में जथान हो जाता।* 2०--भ० पर्ष तक्क जी सकता ऐ | इसको अप्टि और प्ारा शक्ति बड़ी तोप्ण ६€। यह घशत बाम्म मो सका € 1 गादों भी खींच सझता € | व इस पर बहन बोक लाई दिया उाता सेब मिलाता हैं और गिरा इना चाहता ँ । या ४१० सल नहां ससता । न छपफार और नवहार--पा उप मरमदेश का दा मो उपयार्श औौष है । यह अरवियों था धरथार सहाय है । झट शा वी पराजुबागयी सुपर पार एरने के शिये उन्ड साथ शा) जगा काम देता है। बाल में दपरी पर गशेदार होने से परत ह




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