ओझा निबन्ध संग्रह भाग 3 | Ojha Nibandh Sangrah Bhag 3

Book Image : ओझा निबन्ध संग्रह भाग 3  - Ojha Nibandh Sangrah Bhag 3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'्द थोगा-निव्ध संग्रह 'धकाशन के वाद कई इतिहासकार उसमें दिए गये शुक्रवार, फाल्युण विदि ( पूर्णिसांत मास्त चेचर बिदि) रे, १५५१ राक सम्बत्‌ (फरवरी १९, १६ ३,० ईं० ? को शिवाजी का ठौकं: जन्म-दिन मानने लगे हैं । इन सारी विभिन्‍न तिथियों के पत्त में समय-समय पर अ्नेकानिक लेख प्रकाशित होते हे हैं । कद १९२४ ई० में पूना से प्रकाशित « “शिव चरित्र-प्रदीप” नामक संग्रह श्रन्थ के सी पद लेखों मैं इ् समस्या का सविस्तार विवेचन है। अपने “शिवाजी का जन्म-दिन'” शीर्षक लेख में श्रोमजी ने मी इस: प्रश्न पर अपनी ऐुश्पष्ट सम्भ्तिं प्रगट की है ब्रौर जेवे “शकाबली” में दी गई तिथि को ठीक मानते हुए उसके समर्थन में “शिव भारत” अन्थ और तंजोर के शिलालेख के 'साथ ही जोधपुर निताप्ती चरदू ज्योतिषी के चंशजों के संग्रह में प्राप्य शिवाजी की जन्म-पत्री तथा उसमें दी गई जन्म तिथि का मी _ उ्लेख किया है । जोधपुर से प्राप्त इस जन्म-पत्री के विपय में न्रिरोधी मतवालों ने कई एक श्राशुंकाएँ की हैं। “'शिवछन्र पतीची &१ कलमी चर” का सम्पादन करते हुए बड़ोदा के वि० स० वाकसका ने इस सम्बन्ध में लिखा था--“रा० ब० श्रोमा के नेत्रों में कोई 'रोग हो यया था जिससे उनमें शत्य- किया करनी पड़ी श्रौर उसके वाद उनकी देखने की शक्ति बहुत ही छीण हो गई है । तथापि वे केवल थत्तरों के साम्य से ही उस कुण्डली को शिवाजी के समकालीन शिवराम ज्योतिषी को ही मानते हैं | झत्तर के साम्य का सह. पुरावा बहुत ही निर्वल श्र सर्वधा अमान्य है । अन्य तथा इस कारण भी यह कुण्डली विश्वसनीय नहीं है । साथ ही शिव भारत में यहों की स्थिति का जो वर्णन है वह इस कुरडली में दी गई स्थिति से मिर्न है यह बात भी भूलनी नहीं चाहिए । ( प्र. २७-२८) | किन्तु इस सारे वादबिवाद के वाद सी अब तक शित्राजी के ठीक जन्म-दिन के सम्बन्ध में प्रघुख इतिहासकारों का कोई मतैक्य नहीं हो पाया है । सर यदुनाथ सरकार लिखते हैं :--“उनकी ( शिवाजी की ) निश्चित जन्मतिथि के बारे में कोई सी समकालीन उल्लेख प्राप्य नहीं है । उनके दरबारी, कृष्णाजी श्रनन्त सभापद, भी सन्‌ १६९७ ई० में ( 'शिव-छत्रपति सें चरिच' ) लिखते समय इस सम्बन्ध में मूक ही रहे । दोनों विभिन्‍न पह्चों के लेखकों ने उनके जन्म की जो च्रलग २ तिथियाँ दो हैं उनमें में सोमवार, श्रम्रेल १०,१६२७ ई को अधिक मानता हूँ | ”( शिवाजी, शवों स; एप. १८ ) | मराठों के प्रमुख इतिहासकार डॉ० गोविन्द सखाराम सर देसाई ने श्रपने नए ग्रन्थ “न्यू हिस्ट्री चाफ़ दी मराठाज़” में लिखा है कि “दुर्गाग्यवश ऐसे पर्याप्त प्रमाण प्राप्य सहीं है जिनके झाधार पर मिशिचत रुप से यह कहा जा सके कि दोनों तिथियों में से कौन सी विस्कु्त सही है .” यपने उक्त इतिहाप-अंध में सरदेसाई श्रप्रेल द, १६२७ ई० को ही जन्म-तिथि स्वीकार कर चले हैं 1 ( खएड १, पृ. ८७ ) “महाराजा. सवाई जयपिंह” शीर्षक लेख पिह्लानी से प्रकाशित होने वाली “विड़ला का लेन पत्रिका” के विशेषांक, बसन्त सं. १६८९ वि, (ई. स. ११३३) में प्रकाशित हुआ था | तब तक




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