श्रीमद्वाल्मीकि - रामायण भाग - 8 | Srimadvalmiki - Ramayana Bhag - 8

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Srimadvalmiki - Ramayana Bhag - 8 by चतुर्वेदी द्वारकाप्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwarkaprasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कं युद्धकाणड उत्तराड को विषयानुकमणिका अड्सठवाँ सगे ६६७---७० ३ युद्ध से भागे हुए राक्षसों द्वारा कुम्भकण के मारे जाने की सूचना रावण को मिलनी । कुम्भकर्ण के मारे जाने पर रावण का विलाप | उस सम्य रावण को विभीषण की बातों का स्मरण होना । उनहत्तरवाँ सगे ७०३--७२७ त्रिशिरा का रावण को आश्वासनप्रदान | त्रिशिरा, अतिकाय, देवान्तक, नरान्तक, महोदर, सहाकाय आदि की युद्ध-क्षेत्र-यात्रा । बानरों और राक्षसों का घोर युद्ध । नरान्तक का वानरी सेना को ध्वस्त करना । वानर सैन्य का नाश होते देख, सुत्ीब की अन्नद के प्रति वक्ति | तदनुसार अदन्भद का युद्ध के लिए आगे बढ़ना । नरान्तक ओर अज्ञद का युद्ध । नरान्‍्तक का अन्नद के दवाथ से बध। सत्तरवाँ सग ७२८--७४ ५ देवान्तक, त्रिशिरा, महोदर का अज्ञद के साथ युद्ध । देवान्तक का वध । महोदर का वध । त्रिशिरा का वध । उन्मत्त राक्षस के साथ हरियूथप गवाक्ष का युद्ध । उन्मत्त राक्षस का गवाक्ष द्वारा बध | इकद्दत्तरवाँ सगे ७४४--७७३ भाई, चचा आदि के वध से क्रद् हो, अतिकाय का युद्ध करने के लिए आना | झतिकाय की मार से वानरों




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