मंजिल की और | Manjil Ki Aur

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Manjil Ki Aur by साध्वी रत्नत्रयी - Sadhwi Ratna Trayii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घिडि एि छिडिफिए लए एडि डिश तिल न जिकल ला लि कातिल तक शा कि 11 1 'फल-फूल युक्त वृक्ष हो, बहती हुई नदी हो मगर उससे न तो भूखे को फल मिल सकते है न प्यासे की प्यास बुझ सकती है । दुष्टों से भलाई की इच्छा करना रेत में से तेल और पानी से मक्खन निकालने जैसा है। सज्जन पुरुष का स्वभाव तो फलदार वृक्ष एवं बहती हुई नदी के समान होता हैं । कहा भी गया है - वृक्ष कबहु ना फल भखे, नदी न संचे नीर । परमारथ के कारणे, साधुन धरा शरीर ॥ सज्जन पुरुषों का जीवन परमार्थ के लिए ही बनता है और पूरा हो जाता है । वे लुकमान की दूसरी शिक्षा को अपने जीवन मैं हर पल स्वीकार करते हैं अर्थात्‌ बदी से बच । यह उनके जीवन का सूत्र होता है । बुरे आचरण से बचने वाला ही सदाचार को अपना सकता है । जो सदाचारी है वह बुरे आचरण का विचार कर ही नहीं सकता । सदाचार के अभाव मे मानव-जीवन मूल्यहीन हो जाता है । मानव की लोकप्रियता उसके सदाचार के कारण ही फैलती है । मानव जीवन की महिमा उसके सुन्दर शरीर से नहीं बल्कि सदाचार के कारण होती है । जिस व्यक्ति में सदाचार का अभाव है यदि उसके पास बल, सौन्दर्य एवं वैभव का विशाल भण्डार भी है तो वह निरर्थक है । सज्जन बदी से बचकर चलते है, मगर दुर्जन अच्छाई से - भलाई से बचकर चलने में सुख अनुभव _ करते हैं । एक व्यक्ति बीज बो रहा था । तभी उसके पास एक सज्जन व्यक्ति आ गया और बोला- भाई ! खेत में क्‍या .ो रहे हो ? उसने कहा - नहीं बताऊंगा । सज्जन ने कहा - अच्छा मत बताओ, आज नहीं बताओगे तो क्या, जब बीज अंकुरित होंगे तब पता चल जायेगा ! दुर्जेन ने कहा - ठीक है तुम इंतजार करते रहना, मैं ऐसे बीज अपने खेत में बोऊंगा कि वे अंकुरित ही नहीं होगे ) सज्जन उस दुर्जन की मूर्खता को जानकर चुपचाप आगे बढ़ गया । दुर्जन स्वभाववश अपना अहित करने मे भी नहीं चूकते है । वस्तुत: जो अभागा है वही छल प्रपंच के जाल बुनता है । सौभाग्यशाली अपने सदाचार के कारण पाप कार्यो से निर्लिप्त रहता है । जो सुधी है वह बदी की ओर आंख उठाकर भी नही देखता है । महापुरुषों का जीवन




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