जहानारा की आत्म - कथा | Jhanara Ki Aatam-katha

Jhanara Ki Aatam-katha by बाबू केशवकुमार ठाकुर - Babu Keshavkumar Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जहानारा को आत्म-कथा ान्यमाभाक हे पे के पी के है के दर दा [ १] मेरा क्रन्दन जीवन आर म्ृत्य--इस विश्व के दो रूप हैं । सृष्टि के प्रत्येक अंग में इन्हीं दोनों का नाटक दिखाई देता है। संसार ने देखा है में भी देख रही हूँ । ओफ दुर्भाग्य मृत्यु तेरा भयानक रूप मेरे सामने है। फिर भी हैं जीवित हूं । तेरे रूप की भीषणता में अपने खुले हुए नेत्रों से देखती हूँ । में देखती हूँ तेरा मनुष्य-रूप और उसके दोनों नेत्र कठोर नेत्र वे नेत्र जिनमें न तो प्राण हैं और न शील है यही को तेरा रूप है यह रूप तू ने परिश्रह किया है--तेरा नहीं हे मृत्यु तेरे निश्वासों की शीतलता मेरे जीवन की शीतलता का कारण बन गयी है । इस शीतलता के कारण मेरे जीवन . की सम्पूर्ण आशायें विलीन होती जा रही हैं । इस दुर्ग का बन्दी. जीवन आज मेरा. जीवन है । इस विश्व में में झाज अकेली हूँ न कोई मेरा है और न में किसी की हूँ। प्रिय बन्घु दारा का रक्तरश्ित सिर मेरे सामने हे । अपने श्ण बडे




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