मैंने कहा | Mainne Kaha

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Mainne Kaha by गोपालप्रसाद व्यास - Gopalprasad Vyaas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लेखक की भ्रत्य रचनाए भ्रमी सुमो ! पूप्ठ एक्ष४ (पृष्तरा स॑प्करस ) जुस्प ४७ ४.०० हएल्दी-साहित्प में ब्यासकौ की. 'हंस्य संसाईताएं कहा जाता है । हिर्दी कषिठा में प्िप्ट हास्म कौ परम्पण के अ्र्मदाता भ्दासजी हौ हैं। उसका हास्य पारिषारिक द्वोठा है। कवि की पत्सौ जप्गो करी चौजौ' के रूप में प्रा भारत कै घर-बर में प्रसिद है। भजी सृतो' में ध्यासजौ की पुराती प्रभौ प्रसिड कवितापों का संप्रह है। मे रचागाएँ करानौ से कब्नकत्ते प्रौर काप्मीर से कम्वाकुमारौ तक छतता के दिसों में घर रिए हुए हैं । कदस-कदस बढ़ाएगा बुप्ठ ६४ (तोशरा संस्करण) पूक्य घ० ११४ ध्यासजी ध्य॑म्प विनोद ही शहों लिखते, उतर्मे बौर रफ्त शिखते की भी प्रदूभुव क्षमता है। प्रस्थृत पुस्ठक में प्रोजपूर्ण भाषा में तेदाजी सुभाषध्रत् बोस के एबतरजता-संप्राम का पशक्षमपूर्ण ऐतिहा्िक गर्म प्रस्तुत किया गया है! हिन्दी में यह बीर रस पूर्ण छण्ड-काष्प प्रपतती परम्परा में एकदम मौशिक धौर राप्ट्रीय भाषगाप्रों से ध्रोत-पोत है । हमारे राष्टरंपिता पृष्द ११६ (हूसरा संस्करण) शस्प इ्० २ » श दांपघीगी पर प्रगक पुस्तक लिछो गई हैँ सैकिन उसके जीबन पौर इफ़त वो एक ही जगह संसेप में प्राकर्पेक कवि-बाणौ से स्यक्त करनेबाली महू प्रथम प्रामारिणक पुस्तक है । इस पुस्तक कौ साहगा सबने मुक्तकष्ठ सै की है । प्राआर्य बिनोजा मावे से स्दपें इसकी मूमिका सिंप्री है पौर राजपि पुएपोत्तमदातजी टंडन से इसके 'रो छम्द' लिखें हैं। गांपी-घरित बृष्ठ हूए मूह्य र० ० १० कारों भौर हौड़ों कै मिए रत और रोकड़ काया में मोटे टाइप में पांजीजौ कौ यह प्रामाचिक जीवभी बास-साहित्म में एक भहृत्त्वपूर्ष प्रकापत है। ज्र प्लात्माराम एण्ड संस, दिल्‍्सो-६




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