संस्कृति और समाजशास्त्र भाग - 2 | Sanskriti Aur Samajashastr Bhag - 2

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
92 MB
                  कुल पष्ठ :  
286
                  श्रेणी :  
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सास्कृतिक मर्यादा भौर उपकए्य पाश्मि समाय ह] [. १०
फिर कचहरी यह जाँच करतौ थो कि प्रपराणी ते बास््तव में स्मुक ध्परा”
किया है या मह्ोँ। यह दूसरा काम कठिन वा घता इसके लिये प्रमास कौ
झ्राइश्यका पड़ने सपी घौर तब गबाह को प्रावश्यकृता ने झा शिया | दिसौ
मौ ध्यक्ति के मपराध को प्रमाणित करने को साप्ठी की प्रावस््यकता पड़ने
लगी । प्रारम्भिक काप्त में गबाहइ कौ कोई प्रावश्यक्ता तहींयी गर्योकि सभी
एक बूसरे को लासते ये प्रौर एक दूसरे के सामाजिक प्लौर प्तामाजिक कार्यों
छे परिचित थे ।
शमी प्रब॒स्था में परौक्षस प्रारम्म हुए । ये गिधित्र परम्पएएं पतारत में
कई विदेधियों के प्राममन तक रहो चैंसे प्पराघ किसा है था नहीं लरांचने के
लिये प्रस्ति-स्पर्ण हृष्पादि कराना ! यदि कोई प्रस्नि स्ू कर मी महीं जसता
दा छो छसे सक्ष्या मान कर छोड़ दिया जाता बा ।
परन्तु यहू बात तु्कों को ठीक गईं प्मी । सुर्क मुछमान थे | सुस्का
सोर्मो से इसे शरीयत के खिलाफ माना ध्ौर इसे दाफिर-प्रपा समझकर रोक
दिया मय ।
इसके बाइ तो सास को प्रस्तुत करभा एक सम्दी प्रक्रिया हो पई।
प्ाज के प्रत्पेक गबाह बी पूरी 6रह से जाँच होती है। स्पामाथोध्ठ घोर
पे बाद में पूछता है, पहसे गयाह के बारे में जाँच कौ जातो है कि गह टीक
कह रहा है या कू 5 1
परन्तु यह संप्लिप्ट पद्चठि सम्पठा के विकास के कारस बत्मी है। प्रज
स्यायाघीध्त का प्रत्येक स्यक्ति से परिचय महीं होता | समाज बड़ा हो बया हैं ।
प्रादिम समाज कौ एक बहुत बड़ौ दिग्नेपता होएी पौ कि उसहये इकाइयाँ
जोटी होती पी छोटा मूगोल होता पा भौर इसोसिये उसके सदस्य एक दूसरे
को जागते थे ।
परस्पए स्यक्तितत परिचय होने के कारण समस्या दूसरी होतौ है, प्रौर
जानने की परिस्पिति में दूरी का शगा रह जाना संमा्य है।
परादिम राम्प के बिपय में मी मठ निर्षारण करना कठित कार्य है।बया
डसमें कोई सरकार नामक बस्तु थी ? ध्राजकुल हम जिसे सरवार के
हैं, बह प्रा्िमिकाल में रहीं थो | तब तक राग्य के स्वक््प का विकास गहों
हुप्ता था।
हिस्यु झप समय मौ छरकाणे गम भदष्य होते बे--प्रधोंत् किसौ घारर
|, ढो प्राशा चसतौ थी ।
प्रजा गी स्वज॒रृहा जीवन रक्षा प्रौर समृद्धि के लिये हद भौ कोई
रे
 
					
 
					
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