श्री मार्कण्डेय पुराण | Shri Markandey Puran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.04 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भगवानदास अवस्थी - Bhagwandas Avsthi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रण माकण्डेयं पुराण [* शष्याय २-३
सुरम्य श्रम में ठे आये और यत्र पूर्वक उन का खालन
रालन करने लगे । कुछ समय बाद कचे बड़े हुये घर उड़-
कर सूयके रथ तक जा पहुँचे | सूर्य देव के प्रमाव से उन्हे
अपू्व यक्ति शरीर ज्ञान की प्राप्ति हुई ।. वे नद,नदी, समुद्र
बन,पवत आदि को देखतें हुए फिर अपने झाश्रस में लौट
आये और शमीक ऋषि को ग्राम कर मनुष्यों की_बाणी
में झुद्ध-स्पष्ट शब्दों में बोठे--'आप ने हसारे प्राण बड़े
संकट के समय बचाये हैं। फिर हमें पाल-पोस कर बढ़े
बत्त से बड़ा किया । आप का हसारें ऊपर बड़ा उपकार
हैं । श्राज्ञा दीजिये कि इम आप की कया सेवा करें! .
पतियों के बच्चों के इस प्रकार शुद्ध, स्पष्ट, बुद्धि-विचेक-
मुक्त वचन सुन कर सबको बड़ा आरवर्य हुआ ! ऋषि ने
उनसे पूर्व-जन्म का इतांत और पत्षि-्योनि में जन्म छेंने
का कारण पूछा । बचे बोठे-'प्राचीन समय में .विषुल- -
स्वान नामक महानुभाव के सुकुश और तम्बुरू नामक दो
दत्र हुए। यथा समय सुकझ के.हम लोगों ने जन्म लिया ।
हमारे पिता बड़े 'संयमी, तपर्वी,संतोषी, सत्य-निष्ठ,, शुचि-
नान,उदार,/आचारवान शरीर जितेन्द्रिय थे । एक बार इन्द्र
एक बूढ़े पची के रूप में उनकी परीक्षा लेने के लिए श्राथे
उस पक्षी का शरीर बहुत ही जजर था, पंख टूटे हुए थे,
अंग शिथिल थे, दका बहुत “दी दयनीय थी.। ऋषि के
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