वैदिक धर्म की जय | Vaidik Dharma Ki Jay
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.06 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मुनिश्वर देव सिद्धांतशिरोमणि - Munishwar Dev Siddhant Shiromani
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दृश्य पु प्रथम प्रकरण की
सदक--पता नहीं; मद्दाराज आपके थाने से 'पूर्व भी उन्दोने'
छापसे मेंट काने की इच्छा प्रकट की है । मैं' चाहता हूँ कि
' छाप वश्य मेरे स्वामी फी इच्छा पूर्ण करें .
परिडत जी--शच्छा भाई ! चलो । मुझे कया इन्कार है। 'वलो
' बठो । (| दोनों स्वामी! जो की भोर चचहति हैं ।'संन्याप्ती जी उन्हें श्राता'
' देख टहकना शिारस्ग कंग देते हैं ।” श्रति' निकट है कर दोनों सादर
नमस्ते फहते हैं श्रौर सन्यासी जी संप्रेम नमस्ते केकर--)
सन्पाधी-मैं ापके 'दशैन 'करके अति प्रसन्न हूँ। मेरी इच्छा है
, कि में कुछ झाप से वि्वार-परिवतन करूं। फद्िये, छुछ समय'
'निकाल सकते हैं * ' कर
प्डित--मद्दागज ! श्माप क्या कहते हैं । मैं तो भगवन् ! 'झपने
जीवन को भाग्यशाली सममाता हूँ कि शाप सर्रीखे ' झनुभवी
संन्यासी के साथ मान संलाप क़ा सु-अवसर मिल रहा है, ।
मैं राज से नित्यप्रति प्रात कालीन सन्ध्या के झनन्तर दो घटा
श्यापकी सेवा से सभर्पितत करता हूँ ।- ,
सन्यासी--( प्रसन्न बदन. से ) वाह वाह. 'झापका छाति
- घन्यवाद । तो झच्छा; त्माप कृपयी 'घतलावे! कि ार्यों का
। छौननसा धरे है 1 1! 1. ' + प ।
दुशिडत-सैं समझा नहीं किं 'ापका धर्म-प्र्न से 'क्या''्माशय-है |
क्या'श्याप'थार्यों की कर्तव्य पूछ रहे हैं या मत.
सन्याहती--द्वा, हा !. मेरा भाव-सत-प्रभ्न से है । जसे मुसलमानों का
' इस्लाम, ईसाईयो का ईसायत; घौड़ो'का बौद्ध, ' जेनियो का
“ सेन रे पौराशिकों का पौराणिक मत श्ादि है । इसी 'प्रकार
न््य
द्यार्थों का कौन-सा मत है है. *. +. ८
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