युद्धस्थल | Yuddhsthal

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Yuddhsthal by मिथिलेश्वर - Mithileshwar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुछ देर में उसे जैसे भूल-सी गईं । लेकिन अचानक शाम को सनसनी की तरह यह खबरपूरे गांव में फैल गई कि एक भिखमगा गांव से बाहर आम- शाछ के नीचे मरा पडा है । दोपहर भें रामशरण वहू डायन ने उसे खिलाया और कपड़ा दिया था । रामझरण वहू डायन ने ऐसा बाण उस भिखमंगे को मारा कि दो-तीन घंटे भी न वीतने पाए और वह चल वसा | गांव के लोग भीड़ की शक्ल में उस आम-गाछ के नीच जुटने लगे। वह भिखमंगा मरा पडा था । उसके बदन में लिपटी कमीज रामशरण की थी। गाव के आधे से अधिक लोग उस कमीज को पहचानते थे। फिर लोगों के बीच आपस में चेमेगोड्या और कानाफूसी होने लगी। बात को थोडा चटक बनाने के लिए कई लोगो मे किस्से गढना प्रारंभ किया कि कैसे ले उस गली से आ रहे थे और रामशरण वहू हंस-हसकर उस भिखमंगे को खिला रही थी। बह भिखमगा अभी कोई खास बूढ़ा भी नहीं हुआ था। एकदम तदुर्स्त लगता या । अपना इष्द बनाने के लिए रामशरण वहू ने उसे मार डाला । कुछ देर तक तो रामशरण यह सव सुनेते रहे । फिर उनका खून खौल उठा। वेलाठी लेकर गांव मे निकल पडे, “हिम्मत हो तो मेरे सामनेडायन कहो ' 'मार-मारकर हड्डी-पसली एक नही कर दी तो नाम रामशरण नही “पीछे शान वधारना वहादुरी नही कही जाती ।” रामशरण की आवाज से लोगो के बीच सन्‍नादा छा गया। रामशरण के सामने उनकी पत्नी को डायन कहने की हिम्मत किसीको नहीं हुई । लेकिन पी5-पीछे लोगों को गुफ्तमू चलती ही रही । गांव के लोगो के बीच यह धारणा पुरुता हो गई कि यह रामशरण वहू का ही काम है। देवासों मे जाकर वह पक्की डायन वन गई है। गुडगुडी की आग ठदी पड जाती है । रामशरण बहू की आंखें झपकने लगती हैं। रात के तीन पहर गुजर चुके थे, उन्हे नीद नहीं आई थी। सेकिन अब इस चौथे पहर अचानक दुनियाभर की नींद उनकी आंसों में उमड़ आती है। वे गुडंगुडी एक ओर को रख पसर जाती हैं। छिर जद ही उनकी नाक से घरघराहट की आवाज आने लगती है। उतकी ताइ मे घरघराहट की यह आवाज उनके सी जाने की पवकी सूचना न है।




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