गौविन्दवैभवम | Govind Baibhawam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
283
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० गोविन्दवेश्वम्
जिनके पद-कमलके मकरन्द-विन्दुकी मधुरताके साथ चन्द्रमाके अमृत-
निहरकी भी समता नहीं हो सकती) जिन्होंने संसारबन्धनमें पड़े हुए
पापियोंका मी उद्धार कर दिया) वे ही हरि दोषोंके कारण क्या इस दीनपर
प्रहार करेंगे ! हे मज्जुनाथ ! तू मूर्ख है, संशयित-चित्त क्यों हो रहा है !
में तो यह समझकर इस छोकमें स्वच्छन्द विहार करता हूँ कि जिनके
चरणारविन्द सब प्रकारके सुखसमूहोंकी वृद्धि करनेवाले हैं, वे गोविन्द
अथाह भवसागरसे मेरा उद्धार कर देंगे | ११ ॥
गोणं गृणन गोविन्दस्थ गुम्फितगुणानवाद-
मन्यप्रास्यगीतान्येव._ गायसि. गुरुखरे
साधुखरमाधुरीमुपायसि पिकस्वरेषु
वेणुरवे विष्णोने तां विन्द्सि विकखरे।
मज्जुनाथ मधुस्मुदीक्ष्य मोदमानो यासि
दृष्टि ल ददासि सुदा जातु जगदीश्वरे
साधारणसोख्यक्रते मा धावखर मूढ ! मुथा
राधारमणाह्िकजमाधारीकुरुष्व रे ॥ १२॥
गुम्फितं कवितया निबद गोविन्द्स्य गुणालुवादं गोणं यथा स्थात्तथा
गृणन् गायन् त्वस्र अन्यानि आमस्थगीतान्येव_ नायिकानगरवण्णे-
नादीनि गुरुखरे मह॒ति खरे गायसि । कोकिलस्वरेषु उत्तमस्वरस्य
माधुयेस् उपायसि ( रूससे जानासि वा ) । विकसखरे विकासशालिनि
कृष्णस्य वंशीरवे ता माधुरी न विन्द्सि | मधुरं किल्लिदपि वस्तु वीक्ष्य
असन्नस्त्व॑ तत्समीपे यासि, जगदीश्वरे ( यो हि माधुयाणां परा काष्ठा )
तस्मिन् दृष्टि न ददासि ॥ १२ ॥
गोविन्दके गुणानुबवादकों गौणैमावसे गाते हुए तुम अन्य ग्राम्यगीतौकों
ही ऊँचे खरमें गाते हों | कोकिलके खरमें स्व॒स्माधुयं समझते हुए तुम
विष्णुके विकासशाली बंशीरवमें कुछ भी माधुय नहीं पाते | हे मज्जुनाथ !
( आपात-) मधुर बस्तुको देखकर तुम बड़ी प्रसन्नतासे उसके समीप जाते
हो; किंठु जगत्के स्वामीकी ओर हृष॑पूर्ण इृष्टि कमी नहीं डालते । मूह !
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