मनुष्य महाबली कैसे बना | Manushya Mahabali Kaise Bana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.36 MB
कुल पष्ठ :
248
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तो हम देखेगे कि उनमे से हर कोई दुनिया में अपनी जगह से एक अदृश्य जजीर
से बधा हुआ है- एक ऐसी जजीर , जिसे तोड़ना बहुत मुश्किल है 1
जगली मुर्गा जगल की निचली मजिल पर इसलिए रहता है कि उसका भनपसद
खाना तहखाने में है। उसकी लंबी चोच खासकर केचुए खोट निकालने के लिए बनी
लगती है। पेड पर चूकि जगली मुर्गे की दिलचस्पी की कोई चीज तही है, इसलिए
तुम्हे वहा कोई जगली मुर्गा कमी नहर आयेगा भी नहीं।
लेकिन तिपजा या चित्तीदार वड़ा कठफोडवा तुम्हे शायद ही कभी जमीन पर
दिखाई देगा। कठफोडवा देवदार या भोज वृक्ष के तने पर ठोग भारता अपने दिन काट
देता है।
यह किसे ठोग रहा है? यह मिसकी तलाश कर रहा है *
अगर तुम देवदार के पेड की जरा सी छाल उखाडों , तो तुम्हे सभी तरफ जाती
टेढी-मेढी लकीरे दिखाई देसी! थे लकड़ी में छालभक्षी भूग की बनाई सुरगे हैं, जो
सभी देवदार वृक्षों का एक स्थायी ग्राहक और निवासी है। हर टेढी-मेढ़ी रेखा का
अत एक छोटे से छेद में होता है, और हर छंद में भूग की इल्लिया ( भूग की पथ
आने से पहले की कौपावस्था ) हीती है , जो फिर स्वय शभ्रूग भे परिणत होती हैं। इस
भूग ने अपने को देवदार के अनुकूल कर लिया हैं और कठफीडवे ने अपने की इस
भूष के अनुकूल बना लिया है। कठफोडवे की सख्त चोद पेड की छाल को आसानी
से छेद सकती है। और उसकी जीभ इतनी लवी और लचकदार होती है कि वह इन
देढी-मेढ़ी रेखाओ से ( या इन छेदो से ) इल्लियों तक पहुंच जाती है।
और इस तरह हमे एक जजीर मिल जाती है. देवदार वृक्ष -छालभक्षी भूग -
कठफोड़वा ।
यह उन बहुत-सी जजीरों मे से एक है, जिनसे कठफोडवा पेड से और जगल
से बधा हुआ है।
जगल में पेड पर इसे अपनी खुराक मिलती है- केवल छालभक्षी भूग ही नहीं ,
बल्कि अन्य कीट और उनकी इल्लिया भी। सरदियों मे कठफोड़वा बड़ी सफाई के
साथ चीड़फल से गिरिया निकाल लेता है-यह चीडफल को टिकाये रखने के लिए
उसे तने और एक डाल के दीच दाद देता है। कठफोडवा पेड के तने को छोखला
करके धोसला बना लेता है। इसकी सीधी दुम और मड्बूत पजे तने पर चढने-
उतरने के लिए एकदम ठीक हैं। फिर यह पेडो की अपनी ज़िदगी की दिसी और
'डिदगी से अदला-वदसी भला यों करता ?
हम देखते है कि कठफोडवा और गिलहरी जगल के निवासी नहीं, कदी है।
मछलियां तट पर जगल की नन्द्दी-सी दुनिया उन बढूतेरी दुनियाओं में
कैसे आई बड़ी दुनिया बनती है।
धरती पर देवल जगले और म्नेपी ही नहीं , पहाड़ ,
भी हैं।
हर पहाड़ पर अदृश्य बाड़े एक नन्हीं दुनिया को द्रेस
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