प्राकृतिक सौन्दर्य्य | Prakritik Sandaryy

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Prakritik Sandaryy  by कल्याणसिंह शेखावत - Kalyan Singh Shekhawat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राकषन १७ औ3##०+ * »००+-रेबल- &न> >डजलला- अजीअ+ज- संलारफो थोड़े दी देश सफते है। फिए इसफा भो ध्यान रणना चादिये द्वि यार कश्मीर या नैपालफा एक यार देखना विलछ- कुल पिस्सृत नहीं दो सकता; परन्तु स्ख॒ति धुँधघली भौर थस्पष्ट अवश्य हो जाती है। णेसी दशामे पुस्तफों और चित्रों द्वारा उसका स्मरण फर छेना भी दोपारा दैयनेके ही यराश्य दो जाता है। प्ररति-दर्शनक्के विपयर्में एक और थात भी स्मरण रखने योग्य है| घद यद्द है कि दम प्रान्तिसे सम्रक थेठने है कि फिसी देशप्रे ध्रमण फरना और उसको देखना एफ ऐो यात ? ) परन्तु यह डीक महीं है। दोनोंमिं वा अन्तर है, जिस ट्ृष्टिसे रस्किनने स्वीज़र्ेण्डफो पेखा और स्वथामो रामतीर्थ परमहंसने दिमा- छलपको देखा अथवा रपीन्द्रनाथ ठाफुरने भमेरिकाको देपा पी वास्तरिक दैपना है। ऐसा देखना सब नएीं देसते, ऐसे मदातु भाच अपने देखे हुए स्थानोंफा जो वर्णन लिणते हैं धद्द इस फारण मनोदर, छुन्दर भी८ भावपूर्ण नदीीं होता कि उनकी वढिया भापा लिपना भाता है, चरिक धद इसलिये द्वोता है कवि उन्दोंने उन ह्थानोंकी उस इश्टिसे देपा दे जिस ट्ृए्टिसे मजनू ने छैछाको | देषा था। उन महापुररोंके किये हुए प्रारुतिक द्वश्योंके चर्णन जिनको दम घहुत बडे अनुधनी और प्रकृतिफे प्रेमी समभते हैं, बे आनन्द्दापक और चित्तारर्पक होते हैं, उनके पढनेसे हमें रुपए ज्ञात दो ज्ञाता दे क्लि उनका प्खा रड्ीछा टदय था। यदा- पर फतिपय महाजुभावोके किये हुए घर्णनोंके कुछ अश उद्धूत र्‌




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