कुहासे में उगता सूरज | Kuhase Men Ugata Sooraj

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Kuhase Men Ugata Sooraj by आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुछ ओषधियों के निर्माण हेतु कितने पशु-पक्षियों पर तरह-तरह के प्रयोग किए जाते हैं | उन प्रयोगों से वे मासूम प्राणी तड़प-तड़प कर मर जांते हैं, पर उनकी तड़प को पहचानने वाली संवेदना का लोप होता जा रहा है | बच्चों का अपहरण और विक्रय क्या क्रूरता की जीवंत कहानी नहीं है | इसी क्रम में लाखों-लाखों कन्‍्याओं और महिलाओं को मजबूरन देह का व्यापार करना पड़ता है । क्या ऐसी घटनाएं किसी भी समाज या राष्ट्र के सिर को नीचा करने वाली नहीं हैं | ये सब बातें किसी एक वर्ग, समाज या राष्ट्र में नहीं होती हैं । पूरे विश्व के सामने ये कुछ ज्वलन्त प्रश्न हैं | इन प्रश्नों का उत्तर खोजने से पहले आवश्यक है कि हमें क्या' वाली उपेक्षा की संस्कृति को जड़मूल से उखाड़ा जाए। किसी भी व्यक्ति के साथ कोई हादसा घटित होता हो तो उसे अपने साथ घटित होने जैसा अनुभव किया जाए | विश्व में कहीं भी कोई अवांछित बात होती है, उसके दुष्प्रभाव से एक भी व्यक्ति बच नहीं सकता, यह बात जिस दिन, जिस बुराई के विरोध में एक साथ करोड़ों-करोड़ों अंगुलियां उठेंगी, उस बुराई का अस्तित्व अपने आप समाप्त हो जाएगा | | कुहासे में उगता सूरज ७ १३




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