आराधना - कथाकोश भाग - 2 | Aaradhana - Katha Kosh Bhag - 2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : आराधना - कथाकोश भाग - 2  - Aaradhana - Katha Kosh Bhag - 2

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about उदयलाल काशलीवाल - Udaylal Kashliwal

Add Infomation AboutUdaylal Kashliwal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
कथाकोश | २१ थोंकी सहायता करता है और सदा स्वाध्यायाध्ययन करता है | मतलव यह कि पर्म-सेवा और परोपकार करना ही उसके जीवनका एकमान्न लक्ष्य होगया है। पुण्यके उदयसे जो भाप्त होना चाहिए वह सव धनकीतसिकों इस समय प्राप्त है। इस प्रकार धनकीत्तिने बहुत दिनों तक खूब सुख भोगा ओर सवको प्रसन्न रखनेकी वह सदा चेष्ठटा करता रहा। एक दिन घनकीत्तिका पिता गुणपाल सेठ अपनी स््री, पुत्र, मित्र, चन्धु, वान्धवकों साथ लिए यश्योध्वज मुनि- राजकी वन्दना करनेको गया | भाग्यसे अनंगसेना भौ इस समय पहुँच गई | संसारका उपकार करनेवाले उन मुनि- राजकी सभीने वड़ी भक्तिके साथ वन्दना की | इसके वाद गुणपालने मुनिराजसे पूछा-प्रभो, रूपाकर वतलाइए कि मेरे इस धनकीर्ति पुत्रने ऐसा कौन महापुण्य पूर्व जन्ममें किया है, जिससे इसने इस वालूपनम ही भयंकरसे भयंकर कट्टों- पर विजय प्राप्त कर वहुत कीर्ति कमाई, खूब धन कमाया, और अच्छे अच्छे पावित्र काम किये, सुख भोगा, और यह बडा ज्ञानी हुआ, दानी हुआ तथा दयाठु हुआ। भगवन्‌ , इन सब वातोंकों में सुनना चाहता हूं । करुणाके समुद्र और चार ज्ञानके धारी यद्योध्वज मुनि- राजने, मंगसेन धीवरके अहविसात्रत ग्रहण करने, जालमें एक ही एक मच्छके वार वार आने, धरपर सूने हाथ छौट आने, स्रीके नाराज होकर घरमें न आने देने, आदिकी सव कथा गुणपालसे कहकर कहा- वह मगसेन तो अधबिंसात्रतके प्रभावसे यह घनकीतचि हुआ, जो कि सर्वश्रेष्ठ सम्पत्तिका




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now