पद्यपीयूष | 1360 Hindi Padhya Piyus (1941)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पद्चपीयूष ४
भावों से प्रेरित होकर की हुई जीवन की व्याख्या है। अथवा यो
कहिए-जब कोई भाव हमारे रागों ओर अलुभों की वस्तु
बनकर किसी विशेष प्रकार की भाषा से बैंधकर सामने भता है
और पाठकों की अनुभूति की कंस्रोटी पर पूरा उतरता है, तभी
हम उसको 'कमतीय कविता! कहकर पुकार उठते हैं । श्रतः
सिद्धान्त निकला कि भाव-प्रेरित अलुभूति ही काव्य है।
जब कि अपनी व्यक्तित वृत्तियों को सामान्य मनोवृत्तियों
में मिज्ञाकर अपनी कल्पना द्वारा ज्गत् के रुपात्सक चित्नों-
व्यक्ति चित्रों-का निदशेन कराता है, तभी वह काव्यांगन मे
विचरने वाला प्राणी समझा जाता है। कवि का महत्तत उसके
प्रतिपाद विषय, विचार तथा धार्मिक भाव ओर उसके प्रभाव पर
श्रवत्म्बित है.। अतः कवि का कततेव्य है कि वह जो चित्र चित्रित
करने चला है, वह ऐसा होना चाहिए कि पाठक अपनी राग्रात्मक
अनुभूति का उसमें अनुभव करने लगे । यदि कत्रि अपनी कृति में
/पाठक के लिए बुछ, कहता चाहता है, तो वह अपने काव्य और
'ज्ीवन का अन्योन्याश्रय सम्बत्ध स्थापित करे ।.' न
| कवि अपनी अति में जत् के अव्यवस्थित पदाथों को अपनी
कविता द्वारा ज्योति प्रदान करता है। अतः उसके लिए प्रकृति-
,निरीक्षण भी आवश्यक है। जो कवि प्रकृति के विरूद्र लिखता है,
वह हास्यास्पद समझा जाता है और उसका वह वर्णन सवेधा
, अजुपयुक्त सिद्ध होता है। कारण, श्रकृति के छिपे और खुले भेदों
को सेसाधारण के सामने ,मनोहर हुप में प्रकट करना कविका
काम है! (--पर्नप्रिह) | कवि प्रक्ृति का पुरोहित है। जिस प्रकार
पुरोहित के तिएं यज्ममान के कुल-क्मागत सब आचाएं का बिल
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