सूक्ति सरोवर | Shukti Sarovar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पविनय-प्रसद्भू ]). सूक्ति-सरोवर | 3 कारे कुद्रूप सील भालु हू सहात तुम्हें, ः लीजै नाथ साथ मन मेरो अति कारो ऐ॥०॥ मेरे मन में कुटिलता और फठोरता उसी चन्नुप की सी है जिसे तुम नित्य धारण किये रद्दते दो, वाण के समान तीदण श्रौर जुकीला भी है और बाण ही आपका मुज्य आयुध है। तुम्हें राजा समभाऋर नजर देता! हैं, इसे' कबूतर फीजिये। बन्दरों से भी अधिक चचल और छुबुद्धि है। बन्द्र आपको प्यारे थे। भील ओर भालुशं से भी अधिक फाला और छुरुप है। जितनी चस्तुएँ तुम्हें प्यारी है, उन सबके गुण मेरे मन में मौजूद हैं, अत इसे अपने खग में रसिये--र्सना ही होगा, आपकी प्रिय वस्ठुओं से यद्द भत्ता किस गुण में कम है ? “मअली2529.. (४) जझोनारायण के प्रति । दीन! कवि फी दूसरी उक्ति झुनिये-- कवि | केशव कृपालु एक विनती सुनावै दीन, सानि लीजियो जो नेक चित्त मे तुम्हें सोहाय। बहुते दिनान से समुद्र में बचत अहो, सेज सेसनाग प्ती जो नित्य बहुते जुडाय ॥ सायर-झुता हू नित्य दश्बत चरन रहे, कम सथ घारे गये हुूंही बएते जदाय !




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