हिन्दी ऋग्वेद | Hindi Rigved

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Hindi Rigved by रामगोविन्द त्रिवेदी वेदंतशास्त्री - Ramgovind Trivedi Vedantshastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५). है, शब्द का नहीं। फलतः शब्द नित्य है। भ्रम, प्रमाद, इन्द्रिय- दोष, विप्रलिप्सा आदि के कारण भनृष्यादि के दब्द अग्रमाण हें और ऋषियों के विमरलक अच्तःकरण में उतरे वैदिक शब्द दोष-शुन्य और प्रमाण है । जेमिनि का मत हूं कि शब्द ही नहीं, शब्द-शब्दा्थें और वाक्य- वाक्यार्थ का बोध्य-बोधक संबंध भी नित्य है। यह भी स्वाभाविक है, सांकेतिक वा क्ेत्रिम. नहीं हं। शब्द नाम हैँ, अर्थ नामी हूँ, शब्द संज्ञा . हैँ, अर्थ संज्ञी हे, शब्द बोधक हूँ, अर्थ बोध्य हैँ। यह अनादि-परम्परागत हैं। ध्वन्याख्ढ़ वर्ण, पद, वाक्य सुनने के अनच्तर श्रोता के अन्तः- करण में जो अर्थ-प्रत्यायक ज्ञानमय वर्ण, पद, वाक्य उदित होते हैं, प्रस्फरित होते हू, वे ही प्रस्फ्रित, अमूरत्त पदार्थ स्फोट होते हैं। स्फोट : निराकार वर्ण, पद, वाक्य को प्रतिच्छाया हैं अथवा स्फोट ही अनादि- :. निधन ओर वर्ण, पद, वाक्य नामों का नामी (नामवाला) हेँ। शब्द ! असंख्य हैं, अर्थ भी असंख्य हें। ह ः इस तरह अनेकानेक तकों, युक्तियों और शास्त्रीय प्रमाणों से . नित्यतावादी पक्ष वेद की नित्यता का प्रबल समर्थन करता है। दूसरा मत कहता हूँ कि ईश्वरीय ज्ञान अगाध और असीम हे। । किसी किसी सत्यकाम योगी को समाधि में इस,ज्ञान-राशि के अंश ' का साक्षात्कार होता हैँ । योगी या ऋषि अपनी अनुभूति को जिन द कह में व्यक्त करता हु, वे मन्त्र हें। स्फूर्ति दंवी है; परन्तु शब्द ऋषि के हूँ। ! कहा जाता हैँ कि कोई भी भाषा घ्वनि को प्रकट करने की / केवल प्रणाली हैं और ऐसी भ्रणालियाँ वा भाषाएँ, विविध देशझ्षों में, / विभिन्न रूपों में हे। देश-काल के अनूसार विभिन्न उच्चारण-शैलियाँ : होती हैं। इनके अनुसार शब्द बनते हें और मनुष्य इन विविध शब्दों के विविध अर्थ, अपनी प्रकृति और रुचि के अनुसार, निद्चितत करता / है । इसलिए कोई भी भाषा नित्य नहीं हो सकती--सारी भाषाएँ ! और उनके अर्थ मानव-कृत संकेत मात्र हैं। व्याकरण में शब्द की विक्वृति . (जैसे इ से य' और 'उ' से व होने से शब्द विक्ृत होते हैं) होती / हैं, और) इस तरह जो शब्द परिवतंनशील है, वह नित्य हो भी : नहीं सकता । क्‍ .... यह आधे मत हैं। इन दिनों इसौ मत का विशेष प्राधान्य, त्रामुख्य / वा प्राबल्य है। नित्यतावादियों से पूछा जाता है कि यदि झब्द- | मात्र नित्य हें तो शब्दहप बाइबछ, कुरान और अति दिव गढ़ी जानें




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