श्री जिनाराम | Shri Jinaram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
428
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about ब्रह्मचारी मूलशंकर देसाई - Brahmchari Moolshankar Desai
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
,.. विषय पृष्ठ
ज्ञानादिक एवं सुखादिक का बाधक कम
अन्तराय शेरे८
सुख दुःख का कारण अन्तराय तथा अधाति थे
पु
श्रवधि ज्ञानावरण के क्षय से भ्रवधि ज्ञान की
प्राप्ति ३३६
चारों कषाय के भेद तीत्न मन्द अपेक्षा से है ? ३३६
जिनागम में अलकार कहां तक हो सकता है ? ३४०
पत्नो और जिनवाणी समान सुख के कारण है ३४०
व्यस्तर देव का निवास खड़ा पत्ते में होते है. ३४०
तीर्थंकर के केश से क्षीर समुद्र का जल काला
होगया ' ३४१
वीतरागी मुनिराज की जठा बढ़ जाती होगी ? ३४१
भाले के अ्रणी पर आहार दान ३४१
वीतरागी घुनिराज की भावना ३४२
द्रव्य कर्म अधिकार ३४३
ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय की श्रसंख्यात
प्रकृति ३४३
नाम कर्म की असंख्यात लोक मात्र प्रकृतियाँ. ३४४
प्राणातिपात से कर्म बन्ध होता है? . : ४४५
कर्म की उत्तर प्रकृतियों का स्वरूप ३४५
ज्ञानावरणीय का उत्कृष्ट बन्ध ज्ञान की उप-
योग रूप श्रवस्था में होता है डेइृर
ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय की प्रकृतियाँ सब
कर्मो मे कितने भाग है ३४६
निद्रा नाम की प्रकृति स्वसंवेदन का घात करती
है?
सुख दुःख का उत्पादक वेदनीय कम है ?
दर्शन मोहनीय कर्म का स्वरूप
संक्लेश स्थान तर्था विशुद्धि स्थान में क्या
भेद है ?
सुक्ष्म स्थिति बन्ध कहाँ होता है
भिथ्यादि कर्मो की उत्कृष्ट अनुभाग वृद्धि तथा
हानि किसको होती है
मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट वृद्धि हानि का
स्वरूप
३४७
२४७
३५०
३१०२
३५२
देशरे
श्श्
विपय पृष्ट
मोहनीय कर्म की स्थिति बन्ध में विशेषता 7 ३५९
आयु बन्च और मरण किस गुणस्थान में होता
दश्रए
नाम कम का विशेष भेद श्प्रः
योत्र कम, नीच भोत्नी मनुष्य कौन है ? ३६६
शूद्र मुनि को आहारदान दे सकता है ? ३६६
अन्तराय कर्म े ३६८
स्वंधाती तथा देशधाती का स्वरूप ३६
जीव, पुद्गल, भव, क्षेत्र विपाकी कम ३७:
उदय और उदीरणा मे क्या ग्न्तर है-? ३७:
उपशम निधत निकांचित का स्वरूप ३७:
सब कर्म की प्रकृतियों में वहुभाग ३७.
उदय विच्छेद किस प्रकार होता है द्रो मत ३७
उदय विच्छेंद बाद में बन्ध विच्छेंद प्रकृतियाँ २७,
बन्ध उदय साथ में विच्छेद प्रक्ृतियाँ ३७;
बन्ध विच्छेद बाद मे उदय विच्छेद प्रकृतियाँ ३७,
प्र उदय से बन्धने वाली प्रकृृतियाँ ३७!
स्वोदय परोदय से बन्धने वाली प्रक्मृतियाँ ३३;
निरन्तर बन्धने वाली प्रकृतियाँ ३७
श्रुव बन्ची प्रकृतियाँ ३७!
सान््तर बन्ध प्रकृतियाँ ३७
सानन््तर निरन्तर बन्ध प्रकृतियाँ ३७९
क्षीण अक्षीण स्थितिक का स्वरूप ३७
किस कर्मों की उदीरणा होती है ? ३७:
क्षीण अक्षीण स्थितिक के स्वामी ८
क्षीण स्थितिक प्रदेशाग्न के जघन्य स्वामीत्व ३८२
प्रदेशाग्र के भेद इ८:
निषेक स्थिति तथा उदय स्थिति का जघन्य
स्व्रूप
मिथ्यात्वादि प्रकृति का स्वामी तथा संक्रमण
का स्वरूप
प्रकृति संक्रमण का अन्तर काल भ८
जचन्य स्थिति संक्रमण का स्वामित्य ३८६
भ्रुजाकार संक्रमण का स्वामित्व श्द
भुजाकार संक्रमणों के काल का वर्रान ह
User Reviews
No Reviews | Add Yours...