राजनीति में वाद | Rajneeti Men Vad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
356
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उपयोगितावाद 44
प्रधिकतम हित” वे सिडाव को मासने के जिए विवश वर सकता है। इस प्रकार
शा हपूर्णो उपायो द्वारा इच्छित परिवतन लाने के पक्ष में 'होने के कारण यह अग्रणी
परम्पराप्मा के सवधा भनुरप € 1
१० उपयोगिताबाद व्यक्तिवादी सिद्धाततों में विश्वास करता है (0118
गाया 145 शा ॥1 1000100950९0 0087785)--उपयोगितावाद की मूल भाषघार
शित्ा ग्यक्तिवाद का भाँति व्यक्तिगत स्वाघीनता (1क्19908/1 1०९60प7) है 1 भ्रपर्न
सारे दशन में उपयोगितावादो प्रपनो सारी शाक्ति इस एक ही बात को सिद्ध करने में
सच करत हैं प्रौर वह यह कि व्यक्ति ही सामाजिक भ्न्नव्यूह का सिंहद्वार है”
(रत1एर्वों 18 (16 16ए8007० 01 116 5०९०( कण) । वे चाहते हैं कि सार दशर्म
तथा छिद्धांत उसकी स्वाधीनता तथा भ्रसवता को लेकर ही 'घर्ले और राज्य को
“व्यक्ति रूपी धुरी के चारो भोर घूमने वाले पहिये” से श्रधिक भौर पुछ वे माना
जाय] (1701/0041 ॥रए5: 06 [86 छाए 70076. शा ग16 शाला ए
६1५ 81016'ञञा०ए6 1०५० ९७) शज्य का उद्देदय केबल यही हो कि' व्यक्ति को भपने
जीवन के विकास वे श्रधिक्तम भ्वसर मिले। यदि व्यक्ति स्वाधीन नहीं है तो
प्रजातात चया मूल भधिकार भ्रादि सारी वस्तुएँ मूल्यहीन हैं । उपयोगिताबादी
मनुष्य वी प्रगति म|विश्वास॒ करत है भौर मानत हैं कि यह तभी हो सकती है जब
राज्य व्यक्ति के स्वभाव, आवश्यक्तायें तथा मनोविज्ञान को समझ कर उनके भ्रनुकूल
झपने नियम बनाये । वे इस बात की चिता नही बरते कि राज्य बहुलवादी है प्रभवा
गणत बात्मक, कितु यदि उसमे व्यक्ति स्वृतत तथा सुखी नहीं हैँ तो उसका प्रस्तित्व
निरयत्र है। इस प्रवार व्यक्तिगत स्वाधीनता के प्रइन पर उपयोगितावाद बहुत्त कुछ
ब्पक्तियाद का ही पनुयायी मालुम होता है ।
ः उपयोगिताबादी विचारक
(एफ्राक्तबल्चबछ पफ्रआर्फड) घ
जेरमो बायम (उककलाए' फक्ाबह) 1748 1832--यहँ उपयोगित!वादें
का पिता 'कहा जाता है। यह एक बहुत प्रसिद्ध भ्रग्नेज विचारके था, जो केवल
विचार ही न होकर झपने समय की इद्धलिष्ष राजनीति मे चढ़ा प्रमुंछे मेता भी
रहां था | इज्जूनण्ड की भ्रौद्योगिक क्रातति म'इसने बहुत प्रमुख भाग * लिया था शौर
अपनी एक दजन वे धगमग प्रमुख रचनाप्ना द्वारा' इसने श्रपने समय के इज्धलिश
शासन, माय, श्रोद्योगिव तथा सामाजिक व्यवस्था के दुगु णो की फट्ठ श्रालोचना को
थो। इसवी रचनायें निम्नलिखित हैं --
(1) 17 10 116 फृपाध्णणांट३ णी प्रत्ह्याड बधत 1,8छाबाता
(2) श1गणफ़ञोंढ ता वैघांध्यादएगा्ो वित्त
() (ए्राव्याओआ ०1 एणवात्यों #९/०एा5 हे
(4) एच्नथारफुबा6 ॥एच/ (००्जाढड कर
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