न्याय कुमुदचन्द्र भाग 1 | Nyaykumudchandra Bhag 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
42 MB
कुल पष्ठ :
598
श्रेणी :
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नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi
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पं. माणिकचन्द्र जी - Pt. Manik Chandra
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावनां ७
गुणानां परम॑ रूप न दृश्टिपथसृच्छाति ।
यत्तु दृष्टिपथग्राप्त तन््मायेव सतुच्छकस् ॥
भामतीकौर वाचस्पति मिश्र इसे वार्षगण्य की बतछाते हैं। योगसूत्र की भास्वती आदि
टीकाओं में भी इसे “प्ठितंत्र' नामक गनन््थ की बतछाया है। ५४ वी कारिका की विद्वति सें
आगत “ तिमिराशुभ्रमणनौयानसंक्षोभादि ? धर्मकीर्ति के न््यायबिन्दु ( १-६ ) का ही अंश है ।
कारिका ६६-६७ की बिबृति के ,अन्त में “ततः तीथझ्ल रबचनसंग्रहविशेषप्रस्तारव्याकारिणी
द्व्यार्थिकपर्यायार्थिकौ ” आदि वाक्य आता है। यह आचाय सिद्धसेन के सन््मतितक की दृतीय
गाथी की संस्कृत छाया है । -
इस प्रकार वित्त में दिडनाग, धर्मकीर्ति, वाषंगण्य और सिद्धसेन के ग्रन्थों से वाक्य या
वाक्यांश लिये गये है ।
न्यायऊुसुद॒ चन्द्र
नाम--लघीयसञ्जय तथा उसकी विव्वृति के व्याख्यानग्रन्थ का नाम न्यायकुमुद्चन्द्र है,
जैसा कि उसके सन्धिवाक्यो में निर्देश किया गया है। किन्तु डा० विद्याभूषण, पार्टक तथा
प्रमीजी आदि अन्वेषकों ने “न्यायकुमुदचन्द्रोद्य ” नाम से उसका उल्लेख किया है। कुछ
शिलौलेखों में भी न््यायकुसुदचन्द्रोद्य ही नाम लिखा है। पुष्पदन्त के महापुराण का जो प्रथम
भाग इसी ग्रन्थमाछा से प्रकाशित हुआ है, उसकी टिप्पणी में भी अकलंक का परिचय देते
हुए उन्हें न््यायकुमुद्चन्द्रोदय का कतो लिखा है। इससे पता चछता है कि इस नाम की पर-
म्परा बहुत प्राचीन है । किन्तु नन््यायकुमुदचन्द्र की १्र० प्रति के अन्तिम वाक्य को छोड़कर
अन्यत्र किसी भी प्रति से उद्यान्त नाम नहीं मिलता । संभवत: इसी कारण से पं० जुगल-
किशोरजी मुख्तार ने रह्लकरण्डश्रावकाचार की प्रस्तौवना में उदयान्त नाम देकर भी “अने-
कीन्त ? से प्रकाशित अपने एक लेख में न्यायकुमुद्चन्द्र नाम ही छिखा है।
चन्द्र के स्थान मे चन्द्रोदय नाम प्रचलित होने का कारण संभवतः आदिपुराण का वह
शोक है, जिसमे चन्द्रोदय के कता प्रभाचन्द्र कवि की स्तुति की गई है। किन्तु चन्द्रोदय और
उसके कर्ता प्रभाचन्द्र न्यायकुमुदचन्द्र के कर्ता प्रभाचन्द्र नहीं है, इसका निर्णय हम समय-
विचार में करेंगे । अत: उसके आधार पर ग्रन्थ का नाम चन्द्रोदय प्रमाणित नहीं होता | तथा
प्रभाचन्द्र के दूसरे भन्थ प्रमेयकमलमातंण्ड से सी “नन््यायकुमुदचन्द्र ” नाम की ही पुष्टि होती
है। क्योंकि वह प्रमेयरूपी कमछों का विकास करने के छिये मातंण्ड है तो यह न्यायरूपी
कुमुद का विकास करने के लिये चन्द्रमा है । जब मातेण्ड के साथ ही उदय पद् नहीं है तो
चन्द्र के ही साथ केसे हो सकता है ? अतः प्रकृत टीकाग्रन्थ का नाम न्यायकुमुदचन्द्र ही
होना चाहिए ।
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१ “अत एवं योगशास्त्रं व्युत्पादयितुमाह सम भगवान् वाषेगण्य.--गुणानाम् *? इत्यादि । २ “तित्थय-
रवयणसगहविसेसपत्थारमूलवागरणी?? । ३ हिस्टरी आफ दी मिडीवल स्कूल ऑफ इन्डियन लाजिक, प्रू० ३३।
४ “अकलक का समय ? शीर्षक आदि लेख । ५ जैनहितैषी, भाग ११, पे० ४२५ । ६ “सुखि'**न््यायकुमुद-
चन्द्रोदयक॒ते नमः । ” शिसोगा जिले के नगर ताल्लुके का शि० ले० न० ४६ | ७पृ० ५८ | ८ प्ृ० १ ३०।
५ चन्द्रांशशश्नयशर्स प्रभावन्द्रकवि स्तुवे । ऋत्वा चन्द्रोदयं येन भश्वदाहादित जगत् ॥
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