रक्त दान | Rakt Dan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शपप' ]ु पहना पक १ नहीं है। मुझसे मूल हुई कि मैं प्रग्नेझ़ों के बकसे में धरा गया | मैंगे खाद्दर छाड्टे होशर प्रापकी वार्से सुत सी हैं । मैं अपनी गरनी पर पछठासा हू । भपने घोड़े-से सु के स्लिए मैं समूरी वश के सम्मान को घूस में मिलान को प्रस्तुत हो रहा घा, उस वध को जिसमें मावर बेस शेर-दिन समझ्नाट प्रकबर जैसे उदार भौर दिमालय के जैसे तध्च हृएय बाल धाहजहां प्रोर सच्चे प्रथों में मनुप्य दाराशिकोद्ध जसे स्यक्ति पदा हुए। मैं णुदा क्री कसम साकर कहता हुंकि भव मैं भप्नेडों से बास्ता नहीं रखूगा । भगर पभापकी: मुझपर मरोसा नहीं तो भाप मेरा सर कसम कर दीजिए 1 ( भियाँ कोयाश प्रपता सर शहारुरघाह “र५़र! के बरसों में भुकाठा है।] अहादुरक्षाह्‌ (मिर्जा कोयाप्र को उठकर पपये रुमैजे सै सयाते हुए) दाबाण, हम तुमसे पृश हुए । याद रखो, तुम उस तेमूरी खानदान म जन्मे हो जिसमें सारी सम्पत्ति पुत्रियों को भौर पू्जो को केबल पिता की तसझार मिन्नत का नियम है! पेटे, पह दलबार ही हमारी सबसे बड़ी सम्पत्ति है। मारत में मुगल साम्रास्य की नींव रसने वाले सम्राट माबर के पाप गया था, उद्य उन्हें स्पमा बतम समरम॑द छोड़मा पड्ा--कैयप्त प्रपती तलवार । साआश्य बनते हैं बियड़तें हैं, लेकिन वंज्ञ के या को कस नहीं समन देना हमारा प्रथम कर्तेम्य है । झोनत पुर्चान जा पहांपनाह वी सादगी पर । एड भीठी बात बरके कोई मी ठग से सकता है प्रापवो 1




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