रोम - साम्राज्य | Rom - Samrajya

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Rom - Samrajya by शंकर राव जोशी - Shankar Rav Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रोम नगरके विपयमे दृन्तकथा श्र विश्वास है कि आप अपने इन दामादोंसे कमी युद्ध न करते । परन्तु यह लड़ाई हमारे लिए छिडी है, श्रत हमारी यही भार्थना है कि आप अपने दामादोंको हम छोगोंफे सहित अपने यहाँ ले चलिए | हम लोगोफो अपने यहाँ कुछ रोज आनन्दसे रहने दीजिए | यदि लडाई करेगे तो मारे पति मारे जायेंगे । हमारे घर मिदट्टीमें मिल्न जायेंगे श्रोर तुम्दारे ये नाती अनाध हो जायेंगे । यह सब अनर्थ तुम अपने हाथोंसे करोगे। इस- लिए हम हाथ जोडकर आपसे यही माँगतो हैँ कि हमें पति मिक्षा दें ९ अपनी पुश्रियौके ऐसे दीन वचन खुनफ़र सबैन लोगोके हृदय पिघल गए । उनके हार्थोफ़ शल्राख ग्रिर पडे। उनका क्रोध शान्त हो गया और हृदयमें प्रेम उमड़ उठा । उन्होंने रोमन लोगोसे छलद् कर ली। लोगोफा भन्तुभव दें कि ख्ियाँ ही कलहका सूल है ऊिन्तु ऊपरके विधेचनसे यद्द बात 'विलकुल भूँठ मालूम होती है। स््रियोंकी मध्यस्थताके कारण ही रक्तपातका प्रसग टल गया । शोमन और सबैन लोगोफी मित्रता घनिष्ट हो गई। दोनों राशेकी सलाहसे यह निम्चत हुआ कि रोमन लोगोफा राजा राम्युलस और स्ैन लोगॉका राजा स्याशियस मिलकर राज्य फरे | तद्नन्तर समन लोग और सर्वैन लोग घारी चारीसे राजा चुनें । इस नियमके अरद्धसार राम्युलख अपने साथियाँके साथ पालेटाइन पहाडीपर ओर व्याशियस अपने साथियों सद्दित क्षिरिनल पद्दाडीपर रहने लगा। तथापि सलाद करनेके लिए ये दोनों फ्युरीशियन नामक तालावके किनारे मिल्ा करते थे । है इस प्रकार रोमन और सबैन लोग मिल गए | इससे कुछ दिन पहले इड्रस्कव नामक लोग रोमन लोगोंले मिल ही गये




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