क़हत कबीर | Kahat Kabeer

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Kahat Kabeer by हरिशंकर परसाई - Harishankar Parsai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चर्बी का हल्ला और साथा, इन दिनों चर्दी ही चर्बी है। टिल्ती ने! जैन वधुस्ा से ऐसी गलती हुई कि शप्ट्र उह़ें कमी क्षमा नही करगा। तुम शायद सोच रहे होग कि जन वघुशो से यह गलती हुई कि उहाने वनस्पति तेल में मिलावट के लिए विद से गाय की चर्बी बुवायी ? अभी कुछ नही कह सकते क्योंकि मामता सिद्ध नही हम्ना । मैं यह नहीं कहता कि इन जोगा ने मित्रावट के लिए चर्वी क्यो बुलायी । चर्बी तो वई साला से उल्ायी जा रही है देश मे भी निवातों जा रही है। राष्ट्र को प्रौर राष्ट्रवासियो को इस पर योई एतराज ही है | का चिक्रायत इन जैन बघुआ से यह है ति' इसे त॑मे धगुआप ने ल।॥॑ भी है पकड क्यो लिए गये। हम प्रर्हू पड़े जागे के लिए मितवीशों हि भी में चर्बी मिलाने मे लिए गहीं। इतहे घूंत कही ही आती गा श्रम वाजो मो ठीयः पैशा गहीं दिया ? गया साध विभाग के गषिकारिगा | उपया जायज प्रेमठ गहीं किया मेगा विलाबहट परम 'हूति साला मात संतुष्ट नहीं गिया ? गया राणधीतिया संबंधों गे दीत शा गधी ? वी भूत जरूर हुई जो भर्वी पड़ णी गधी । साधो इृगगी इरा भूण से हगारा मुंह माला हा गया। तब तो वी जन भ्रहिंसा परमोपम्त यादे। सो भरी परदाग। गंगर जैग मे शालीन हाते हैं। विसी मृत्रि ते, णैत धर्ग गेता गे, विधी हैन एवहत में इसकी निंदा नहीं वी । गति रु तीलदुगार थी चुग। भ्राभार्ग ; भी चुप । प्रगाज्ा याले भी घुप्र। भामिया मारो मी महत पीर / १३ + छू ;




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