डॉ॰ अम्बेडकर और दलित आन्दोलन | Dr. Ambedakar Aur Dalit Andolan

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Dr. Ambedakar Aur Dalit Andolan by धर्मवीर सिंह - Dharmavir Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ओज सभा का इतिहास पढेगी तो मेरी सराहना करेगा अत वैचारिक और राजनैतिक विरोध के साथ-साथ इने/दोनो महा” चुदपों ते एक दूसरे को सराहना भी की है।। बहुत जल्दी ये एक-दूसरे को पूरी तरह समझ गए थे ।इन दोनो को एक दूसरे को कद्र करते हुए एक दूसरे के साथ रहना था। ये दोनो ऐसी जगह पहुँच गए थे कि 'एक दूसरे को भ्रम में नही रख सकते थे ओर धोखा नही दे सकते थे । ये एक दुसरे के सामने राजनीति नही खेल सकते थे | यदि गाधी जी का बाम अम्बेडकर के सामने खालिस राजनीति से चल सका होता तो वे 1932 में आमरण अनशन के लिए मजबूर न होते | डा० अम्बेडकर ने' गाधी जी को जिस जगह ढकेल दिया था, उस जगह गाधो जी के पास 1मरण अनशन के सिवा कोई चारा नही रह गया था । गाधी जी नें अपने राजनैतिक जीवन में जिस तरह के हथियारों को तरजीह दी थी, अम्बेडकर के सामने उन्होने उसमें से सबसे खतरतात हथियार का अयोग किया था। गाधी जो के पास आमरण अनशन से बढ कर अपना कोई दूसरा ब्रह्मास्त शेष नही रह गया था। इसमें कोई सन्देह नही कि यदि बे दूसरी तरह के व्यक्ति होते तो दूसरी तरह का सबसे खतरनाक हथियार इस्तेमाल करते । लेकिन जो वे नही थे उसके बारे में कुछ भी सोचना बेकार है। वे राम नही थे जो शम्बूक का गला काटने चल देते । लिकित गाधी जी के इस आमरण अनशन से स्थिति इतनी खतर नाक हो गई थी कि उसके अनन्तर कुछ भी कसर बाकी नही थी इस अकरण को ले कर उनके अनुयात्रिया में से अधिकाश की सोच अजीब तरह की हो गई थी । डा० अम्बेडकर राजनीति नही बैलते थे। वे हमेशा राजनैतिक जजीर को तोड कर फेंक देते थे। व ही उनका आन्दोलन चलाने के लिए हिसा में विश्वास था। वे यही कहते थे कि भेरे सामने आओ और और मुभमे बात करो ) वे समस्या को आदमियो की तरह तवे से» बहस से ओर समभदारो से सुलकाना चाहते थे। उनका हथियार उनवो विद्वत्ता थी। वे भारतीय समाज मे लोक तञ् और कानून वे द्वारा आन्ति चाहते थे । इस मामले मे उनका रास्ता गाघी जी में जैसा ही था। गाघो जी का अग्रेजा से सही वहना घा-- हमने आपका कया




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