श्रीरामकृष्ण परमहंश | Shri Ramkrishna Paramhans
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.58 MB
कुल पष्ठ :
263
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विपय-प्रचेदा पद चारना धच्छा नहीं लगता । परमहंसदेव कहा करते थे कि जब- तक लॉग भोजन करना आरम्भ नषीं करते तभीतक आपसभें वात- चीत करते हैं जहां भोजन करना आरम्भ हुआ कि सारा शोर- गुल आप-से-आप बन्द दो जाता हैं । ऐसे ही आत्माजुभवी महात्मा शाव्दजालमें दवा समय नहीं खोते उन्हें भगव्त्-स्मरणके अमृत- तु ४ पानमें ही आनन्द मिठता है । नाना मतावलम्बियोंके आपसके झगरे अज्ञान और अहंकारके कारण ही होते हैं । दूसरे मर्तोको सदानुभूतिके साय भलोभाति समझे बिना झगड़ोंका मिठना असम्भव ऐ । सभी धर्ममार्ग अपने-अपने स्थानपर सत्य हैं । यह आग्रह करना कि केपड अमुक धर्म ही सत्य है सत्यका गला घोटना है । परमात्मासे मिलनेके अनेक मार्ग हैं जो जिसे प्रिय और सुल्म प्रतीत हो उसके िये वहीं हितकर है। यदि यह माव लोगोंमिं दृढ़ हो जाय तो आज ही परस्परकी कलह मिट जाय और जगतमें दान्ति स्रापित हो जाय । परमहंसदेवका संसारके कल्याणके हेतु यदद परम हितकर आविष्कार था कि सब्र धर्म सप्य हैं यदद उनका अपना अनुभव था क्योंकि उन्होंने कई मतांकी सप्यताकी उन्दींके उपार्योका अवटम्वन करके परीक्षा की थी जिससे उनको दृढ़ विश्वास हो गया था कि प्रत्येक धर्म सप्यकी नींवपर खड़ा हैं । जो जिस मार्गसे अनन्यचित्त होकर और उदारमावसे दृढ़तापूर्वक चढेगा वह सत्य चस्तुकी उपलब्धि अवध्य चर ढेगा । हिन्द्को सच्चा हिन्दू बनकर अपने धर्मपर अविचढित रूपसे दृढ़ रहना चाहिये । सुसढ्मानके छिये निप्वपटभावसे पक्का सुसल्मान वने रहना ही श्रेयस्कर है । ऐसे ही ईसाई आदि अन्य मतावलम्बियोंकि छिये अपने-अपने धर्मके न््ज्
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