महाभारत भाग - 12 | Mahabharat Bhag - 12

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Mahabharat Bhag - 12  by गंगाप्रसाद शास्त्री - GANGAPRASAD SHASTRI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४) ह युद्ध की भीपण आग- भारत में कया २ कोतुक दिखावे-इसे कौन जान सकता है, परल्तुः दुर्भाग्य से कहीं परपर के ' वैमनस्थ की आग भइक उठी-तो उस समय फिर वही अपनी संस्कृत्ति की रक्ता का प्रश्न खड़ा हो जावेगा... , - - पूर्वकाल में क्षत्रिय वीर थे | हसने -भी अपनी तलवार के जौहर दिखाए थे, परन्तु आज तो हस तलवार-का नाम भी नहीं ले सकते । सच्चे ज्षत्रियों के दर्शन बहुत ही कम होते हैं।होनहार की वात है; कि हिन्दुओं में अभी तक फूट भी पूष्र की भाँति घर किए हुए है-ऐसी दशा: में हिन्दुओं का मार्ग प्रदशक कोन हो सकता है । हमें यहाँ अधिक कहानी नहीं वढ़ानो हु;। प्रत्वेक हिन्दू अपनी सम्यता की रंक्षा के लिए अभी से तय्यार हो जावे, परन्तु सबसे अधिक तो ब्राह्मणों से निवेदन है; कि उन्हें द्रोणांचोय- और अश्वत्यासा को उदाहरण वना कर अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए अच्छी तरह सन्नढ्ध हो जांनां चाहिए ए । उनके तो यंह ध्येय बनजानाचांहिए क्रि-> अग्रतश्वृतुरावेदा: पृष्ठतः सशर धनु: हद ब्राह्मामंद जात्र शापादाप शरादाप।॥ अर्थात्‌-तराह्मण के आगे चारों वेद ओर पीछे शरसंहित शरासन 'होना चाहिए। वह संसार को दिखा दे, कि ऐसा अहतेज होता है ओर यह क्ात्रतेज है | वर! इसी में हिन्दू जोति 'की रक्षो का : चीज सुगुप्त है । अश्वंत्थामा कहते ईं-- .'




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