पुराण - विषयानुक्रमणी भाग - 1 | Puran - Vishayanukramani Bhag - 1

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Puran - Vishayanukramani Bhag - 1  by डॉ.राजबली पाण्डेय -dr.rajbali pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भस्तावना भारतीय वाइमय में पुराण-साहित्य का बहुत ही महत्वपूर्ण और ऊँचा स्थान ह। श्रथववेद* तो पुराण को अन्य बैदिक संद्विताओं का समकक्ष समझता है। उसके अनुसार ऋक साम, छन्‍्द और पुराण सभी यजुप्‌ ( यज्ञद॒विप्‌ ) के साथ उत्पन्न हुए। ब्रह्मण-अन्धों में तो पुराण की वेद ही कहा है। शतपथ आद्मण* में अध्ययु यह कहते हुए पुराण की प्रशंसा करता है कि ध्युराण वद ही है। वह यही है ।” उपनिपदों? में इस बात का व्याख्यान किया गया है कि सहाभूत ( बढ ) के निःश्वास से ऋगेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्वाद्विरस , इतिहास, पुराण, विद्या, उपनिपद्‌, श्लोक, सूत्र, अनुव्याख्यान, व्याख्यान ये सब निकले। छान्‍्दोग्योपनिपद्‌* में तो इतिहास-पुराण का पंचम वेद ही साना गया है । किन्तु उपयु क्त कथनों से यह नहीं समझना चाहिए कि जिस “पुराण” का उल्लेख वैदिक सादित्य में है वह परवर्ती अष्टादश पुराण हैं। परन्तु यह सत्य है कि उसका समावेश अष्टादश पुराणों में हो गया। इतना ही नहीं, भारतीय परम्परा का यह दावा है कि पुराण वेदिक साहित्य के ऊपर व्याख्यान और उपाख्यान हैं और इनकी सहायता के विना आज़ वेदिक साहित्य सम्रका नहीं जा सकता यो विद्याचतुरों वेदान्साज्रीप्रनिप्रदो द्व्जिः न चेत्पुराणं संविद्यान्नेच स स्याहिचक्षणः ।। इतिहासपुराणाभ्यां वेद समुपरवृंहयेत्‌ । विभेत्यल्पश्चताहंदी मामयं प्रहरिष्यति ॥ बायु० १२००-०१ पदूम ० ४॥२॥३०-२ शिव० ५।१। २५ अभ्षत: सामानि छुन्दांसि पुराणुं यजुपा सह | उल्ल्िशापजशिरे सब दिविदेवा दिविश्चतः ॥ अथर्ववेद ११।७।२४ २ अध्वर्युस्तात्ये वे पश्यतो राजयेत्याइ-पुराणं वेद; सोअ्यमिति किश्वित्‌ पुराणमाचक्षीत। स्का कफ शतप्थ० १३१। ४1 २३1 १३२ बृहदारण्यक० २।४।१०, तुल० शतपथ० १४।६।१०।६ सद्दोवाच ऋग्वेद मगवोडध्येमि यजुर्वेदं सामवेदमथर्वणं चत॒र्थमितिहासपुराणं पशञ्चमम वेदानां वेदम | क़.. छ छान्दोग्य० ७ | १। १




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