दिनकर और उनकी उर्वशी | Dinakar Aur Unaki Urvashi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
440
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about देशराजसिंह भाटी - Deshraj Singh Bhati
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अर्मशी की कजाइस्तु श्षट
समबेत मान बाते के पदचात् परियों का परस्पर बार्लाप्ताप दिलाया गया
है वास्तव में यड् बाछठोसाप मूल कथा तक पहुंचते की भूमिका है।
प्रभ्ग करती है--- 'बरठी भ्रौर भ्रम्धर में कया भेद है ? रम्मा उत्तर टेवी है
कि “मुत्यंसोक मरने बाला है पर सुरकोर श्रमर है 1” मेनका पुन रम्मा के
उत्तर का स्पष्टीकरस करती हुई कहती है कि हम प्रमर होते हुए भी बड़ो
प्रभामिनी हैं बयोकि हमें स्पजर्नों की यरण लेकर ही तृप्त हांना पड़ठा है ।
हसारी रसभा मृदख-बासियों की ठरह पदा्शोंका ग्सना द्वारा मधुर स्माद
सेने में प्रधमप है। इस दृष्टि से बराबासा अम्य माम्प हैं। पधपि इसका
जीषन प्रत्यन्त क्षशिक है मगर फिर भी बे झपने थयो दिल के जोगन में बसक-
बधक जीते हैं ।
मेनका द्वारा पथ्ची की प्रमित महिसा सुनकर सहजम्या मंतका पर स्संम्प
कसठी है कि मुझ भव पता सगा कि धृम घरसी का इतमे मुक्तदकठ सप्रससा
क्यों कर रही हा? सम्मबत उधशी की तरह तुम्हारा भी मष कही फ्रेंदा
है? मिट॒टी का मोहन कोई अम्तर में प्रात गसा है ?
मशका को उर्वशी की प्रेमकपा का ज्ञान सहीं था भतः सहजस्या बताती
है कि एख दिन छबसी प्रमसी सद्धियों के साथ कूबेर के घर से बापिस इष्पपुरी
को लोट रह्टो भो। इसी बोच एक राक्षस बाज की तरइ उर्वश्ञो पर मपटा प्रौद
प्रश्न श्री भुजाप्रों में समेट कर प्राकाप में उड़ मया | उबक्ली मे भाष्मरश्ना के
डिए बढ़ा णोर मक़ाया। कम्दन-ब्थनि सुनकर एक राजा जबध्ची की रखता करने
के स्रिए होड़ा। राजा भौर राप्तठ दोषों का परस्पर मस्स-पुद्ध हुप्ा भौर
पभ्रन्वतोपटथा उर्बवश्ली को उसने उस 'काख-ज बल' से मुषत कर दिया मगर विधि
की दिडम्बया देक्षिप् | उ्ंघो उस दत्प के बाहु-पाष्ठ से थो मुक्त दो माई
सेकिल पस पुरपरल के परम में फंस मई । मह प्रम एकांयी हीं था । धरती
| पर शाजा पुकरबा बिरह की साय से दरुग्ब हू। रहा था भौर स्वर्यश्रोक में
। उबग्जी उस काम-मृति को कठोर बाहों म प्रपता सबस्थ समविध करने के लिए
/ भ्वाकल हो रहो थी रंमा उबसी के इस प्रम की मत्सता करती है। बह कहती
ईैं--इम प्रप्शरपतों का जन्म इसलिए गहों हुआ कि हम हिसी एक की होकर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...