इन्द्रावती भाग - 1 | Indravati Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इन्द्रावती । श्र
तपिप फहा राज कुछ सूफ़ा । राजा सुनत मरस सब यूफा 0
फहा क्षएठ कृपा यासाई.. सूफी बाट रही जहा ताई ॥
सूफा इन्द्राववी फर देसू.. । छ्वाएठ मिसचे जागिय भेसू ॥
सुनि गुरताथ ऋषपेश्वर जाना । पन्थ अगम राजह्टि पहिचाना॥।
शुपुत भएठ पुनिकुवर न देखा । आए सन्दिर राय सरेखा ॥
शुरू जानि ग्रुरनाथरीं, चेला आपुष्धिं जानि ।
आगम जेग घरा चित, मन परान से मानि ॥रे८॥
कालिजर से! भ्षएद उददासा । प्एठ नरफ मन्द्र-कबिलासएण
सुन्दर कष्ट! फन््त कल जीऊ । फछ उदास तेष्ठटि देखठ पीछ 0४
परेद सीस ऊपर कु भारा | कदासे है जोठ तुम्हारा ॥
दोन््द्ाा ऊवर सुन्दर केरा । सैतुक बीच सपन भा सेरा ॥
झनेठ आज में तेट्टिफ बसानू । सपन देखाइ हरा जेड ज्ञानू ॥
राजपाद धन 'भाग सुख,सब तजि साथौं आग।
जाऊं पोही के देस कह, हा इ संजेशग वियेग ॥३१६॥
झुनि के फहा सुन्दरी राजा 3 तुम्हे क्ैेग तजि जिय न छाजा पर
सुख सम्पत सब दोीन्हा दाता । सारु न छोर प्रात मे लाता 0
कहा रहेठ भगलग में भेगी । अब में है।ठ अगभ फेः जै।गी ४
जेगी हाल अगमपुर केरा ॥ लेठ जाए तेहि गलिय बसेरा ॥
क्षागे बीच रहठ जठ मूछा ॥कितमाहि दायचदइबहमूछा
छघुम फामिनी मत हीनोी, 'भाग खछुपावहु मेहि।
प्रेम खींच है मो कहं, खझबुक नहिं तेोहि शरण
राजे राजपाट शुख तजा । प्रेम आाइ भति से अरबजा 1
सनमभे प्रेस बसेरा लोन्हपा । वरबस राजा प्रेमिय कीन्हए ॥
प्रेस जग्रिन चतभेः उद्गरी । तासे दूए5 बुद्धि कर जरी ॥
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