इन्द्रावती भाग - 1 | Indravati Bhag - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इन्द्रावती । श्र तपिप फहा राज कुछ सूफ़ा । राजा सुनत मरस सब यूफा 0 फहा क्षएठ कृपा यासाई.. सूफी बाट रही जहा ताई ॥ सूफा इन्द्राववी फर देसू.. । छ्वाएठ मिसचे जागिय भेसू ॥ सुनि गुरताथ ऋषपेश्वर जाना । पन्‍थ अगम राजह्टि पहिचाना॥। शुपुत भएठ पुनिकुवर न देखा । आए सन्दिर राय सरेखा ॥ शुरू जानि ग्रुरनाथरीं, चेला आपुष्धिं जानि । आगम जेग घरा चित, मन परान से मानि ॥रे८॥ कालिजर से! भ्षएद उददासा । प्एठ नरफ मन्द्र-कबिलासएण सुन्दर कष्ट! फन्‍्त कल जीऊ । फछ उदास तेष्ठटि देखठ पीछ 0४ परेद सीस ऊपर कु भारा | कदासे है जोठ तुम्हारा ॥ दोन्‍्द्ाा ऊवर सुन्दर केरा । सैतुक बीच सपन भा सेरा ॥ झनेठ आज में तेट्टिफ बसानू । सपन देखाइ हरा जेड ज्ञानू ॥ राजपाद धन 'भाग सुख,सब तजि साथौं आग। जाऊं पोही के देस कह, हा इ संजेशग वियेग ॥३१६॥ झुनि के फहा सुन्दरी राजा 3 तुम्हे क्ैेग तजि जिय न छाजा पर सुख सम्पत सब दोीन्‍हा दाता । सारु न छोर प्रात मे लाता 0 कहा रहेठ भगलग में भेगी । अब में है।ठ अगभ फेः जै।गी ४ जेगी हाल अगमपुर केरा ॥ लेठ जाए तेहि गलिय बसेरा ॥ क्षागे बीच रहठ जठ मूछा ॥कितमाहि दायचदइबहमूछा छघुम फामिनी मत हीनोी, 'भाग खछुपावहु मेहि। प्रेम खींच है मो कहं, खझबुक नहिं तेोहि शरण राजे राजपाट शुख तजा । प्रेम आाइ भति से अरबजा 1 सनमभे प्रेस बसेरा लोन्हपा । वरबस राजा प्रेमिय कीन्हए ॥ प्रेस जग्रिन चतभेः उद्गरी । तासे दूए5 बुद्धि कर जरी ॥




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