हिन्दुस्तानी फहायत कोश | Hindustan Kahawat Kosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दुस्तानी फहायत-फोदा ९ विरत --यती बरह्मचारी नाहाण । घमलोर - व्यर्थ का पोरगुल | अनमिले फी फुराल है सेंटन हो सो ही नच्छा। लव किसी व्यपित से हम टूर रहना चाहते है तब उसके सबघ में थ० । अनभिले फे रृपागी राड सिले चेरागी कोई (औरत) न मिली तो त्यागी मिल गई तो वैरागी । जब जसा अचमर देया तंत्र तेसा करना । त्यागी --विरक्त साधु। वैरागी -वैप्णवों का एक सम्प्रदाय । (वैराणियो में स्त्री रखने का नियम है त्यागी सनी नहीं रख सकते । इसलिए र०।) अनहोत में बौलाद गरीवी में बहुत सत्तान का होना (असरता है) । अनहोनी होती नहीं होनी होवमहार जो होना है वह होकर रहता है जो नहीं होना वह नहीं होगा। भाग्यवादियों की उक्ति | अनाड़ी का सौदा वारा-वाट मूखे का कोई काम ढंग से नही हो पाता । वारावाट होना मारा-मारा फिरना नष्ट-भ्रष्ट होना। अनाड़ी का सोना वारावानी मूर्ख का सोना हमेशा चोखा क्योकि उसे खरे-खोटे की पहचान नही होती । (सराफों की भाषा मे वारावानी सोना बहुत बढ़िया किस्म के सोने को कहते है ऐसा सोना जो कई बार साफ किया गया हो 1) अनोखी के हाथ लगी कटोरी पानी पी-पो भरी पड़ों री जव किसी नीच को कोई ऐसी वस्तु मिक जाती है जो पहले कभी उसके पास न रही हो तो वह उसका बडा घमड करता है। अनोजी जुरवा साग मे शोरवा (मु० स्त्रि०) शोरुवा मास का ही बनता है पर उस मूर्ख स्त्री थे शाजी का ही शोग्वा बना दिया । अनाठीपन के लिए क०्। जुरवा--जोरू स्त्री । अनोखे गाव में ऊंट भाया लोगो ने जाना परमेसुर आया फिसी गाव के लोगों ने ऊट देखा था । एक वार जब यह उनके गाव में आया तो उन्होंने उसे परमेद्वर समझा । मूर्ख ठोग बिना देखी वस्तु के सबघ मे नाना प्रकार की कल्पनाए करते है। अनोखे घर कटोरी किसी घर मे जब कोई ऐसी वस्तु भा जाए जो पहले न रही हो और उसका वहुत प्रदर्शन किया जाए तब क०। मचन्न घन गनेक घन सोना रूपा कितेक घन अन्न ही सबसे बड़ा घन है सोना-चादी उसके सामने कुछ नहीं | अन्रुख घर से नाती भतार (पु०) जिस घर मे नाती का पति की तरह सम्मान हो उसे सचमुच अनोखा माना जाना चाहिए । अथवा अनोखे घर मे नाती ही पति होता है । जहा बडो के स्थान पर छोटो की अधिक चले वहा क०। अपना-अपना खाना अपना-अपना कमाना एक दूसरे पर आश्रित न रहना । अपना अलग घघा करना । अपना-अपना घोलो अपना-अपना पिओ (१) स्वय अपना प्रबंघ करो हम किसी की जिम्मेदारी नहीं ले सकते । अधवा (२) अपनी विपत्ति स्वय भुगतो । (फैलन ने इसका अर्थ विस्तार से नहीं लिखा । वास्तव मे इस कहावत का निकास इस कथा से है--किसी राजस्थानी को कुसुभा यानी अफीम का घोल पीने की आदत पड गई थी। उसने अपने




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