अक्षय रस | Akshya Ras

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Akshya Ras by चन्द्रप्रकाश सिंह - Chandraprakash Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रु * भारते के लविरिक्त लन्‍्य घारे मीरणसे मौपभ भक्माबार बिना ब्रिप्री दारस के झरद घर्माइलम्दियों पर इसीक्िए किये जाने सगे कि थे क्षपता परम पोष्कर इस्हाम को परण कर छें ( असिया ऋए देने मोर रइन-सइम तथा बयभूपा की रोछ दो$ के साथ इस धम्य घर्मो#बिनों दो ढाई इसते आाणानें हपा डर भी दिख्वाप्‌ जाते ये ५ दिंपृर्पप होह देसे बाढों हओे पन भपदा सरकरी गौंकबरी दिये जाने छा प्रदोधत दिया जाता था। हिंदू घर झोर समाश के नेताकों पर दबाव हाऊ्ता लाता था, जिससे ने दिवी मौ ।श्मर कौ पायिक तिक्ता लडेगे पांव । हिषृशों के पार्मिक मुझसों भौर मम्पेझशों पर प्रधिदष था झि ठसमें दिसी भी प्रद्धार रा सैमठन न हो पके तबा डरसमें की लातोय एकता बसी साइना मे उत्पब्य दो जाे। नही कोई सथा मदिर बनाया जा क्द्ता था और न पुरामे मंदिएों दो मरम्मत ही दी का सबती यौ ! एरं कुछ सम बाद छारे हिप्रू मंदिर पुददारंगी ही सिर जादेंगे। सह एक अदइईर्बभारी बात थौ परं६ इस पर भौ छुंइई एक कअषप्रिक कगूठर इस्समीौ भादना बाद मुसप्रमान सप्रप से पहछे हो मविरों हर पगेता् करमे दे दिए उन्हें अषर॑स्ती मिएर देते थे |” १ उपयुक्त कपन से स्पष्ट हो छाता है डि दैध में परित्यांति किमी पध्टपूण लब॒स्पा तक पहुंची हुईं थौ | औरंपमेद के झापतद्यल में गुगतत शांति से दोमों दूर अल] पा था | ईइर और चुमंब्ारू में वध्बड़ जारंभ इो पया, साजता झोर मौकापुर में लगी प्मगनियां बनाई राई । चुनगारू भी गुबरात सीमा में मिष्ठा क्षिया भय और उसका नाम इस्त्ामाथाद कर दिया भया । 'चुनबाल भेद्र में कया पुजरी दोवी इसझ्ा भनुमान भरी बगुनाथ सरष्यर के इस कपन है हं सकता है,-- * लपने राज्य से दाहर प्स्येक नाइमण ओर युद्ध में दिवुमों दो इत्पा करता और उन मंदिरों झा बिताछ् करता एऋ पुध्यदायक काम माना जाता था ( इव प्रकह्मर सुछक्तमनों में एक ऐसी विचारभारा सत्पक्ठ हो गई झिसके करण दे रपशाव से दो खर माए और मारत इत्या हे परिमतम चार्मिछ छा्तों में गिनन झगे ।” हे श्रद्वा द साम्मिद्र परिस्थितियां झा गिकंप्रेथ करते समय हमने देखा कि तर्झ्ालोग समाज में सपुरघामस्थ भंय जगता व्य जाकाम्त कर रहा बा | शमाज -विज्ञान दवा नूदिज्ञान के अप्दैताशों मे उमी तरह के अदविश्नाों के ॥ भौरतमेब पृ १८५1 ३ झोरपओेब प्र १८६ ।




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