पाषाण युग | Pashan Yug

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Pashan Yug  by मालती जोशी - Malti Joshi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मालती जोशी - Malti Joshi

Add Infomation AboutMalti Joshi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मतलब नहीं समझ सकी। पर उनकी आखों की पीडा, उनके स्वर का यात्सल्य मुझसे छिपा नहीं रहा । बह थोड़ी-मी मिठाई लिये मैं प्रतीक्षा मे बठी रही। बहुत रात गये लौटे थे हरि भैया । आकर छत पर अपने विस्तर पर चुपचाप लेट गये थे। मैंते दवे पाँव जाकर पेडा उनके मुह मे दूंस दिया घा। वया है यह ? थे हृडवड़ाऊर उठ बैठे थे। “मिठाई है । गक्रिस बाते की मिठाई ?' उन्होने भरी हुई आवाज़ में पूछा । 'एक हमारे हरि भंया हैं, उनके पास होने की।” मैंते शरारत से थार्खें नचाकर कहा । कुछ क्षण वे चुप रहे, फिर बोले, “किसने बाटी है ?! “मौसी ने 7! मेरे सिर पर हाथ रखकर कहो | कैसे कहती ! चुप होकर रह गयी। 'बाबूजी ने अपने ठाकुरजी बगे भोग लगाया होगा । ठीक हैन! अपने नालायक बेटे के पास होने की खुशी सिर्फ वे ही मना सकते हैं।' और फिर एकाएक उनका चेहरा तमतमा उठा था, 'क्यों आये थे तुम लोग यहा ! क्या उतने बड़े अफ़ीका में तुम लोगों के लिए जगह नही थी ! आते ही तुम लोगों ने मेरा घर, मेरी मा, मेरा सुख--सब-कुछ छीन लिया“**छोटा-सा घर था हमारा । पर उस घर मे मैं राजकुमारों की तरह पत्ता था । उस समय मेरी हर इच्छा पर अम्मा बिछ-विछ जाती थी। उस समय मैं उनको आखों का तारा हुआ करता था**ओऔर अब, अब दुनिया में वस एक ही नाम रह गया है, मनीप-मनीप-मनीप । 1. और पलंग की पाटी पर सिर रखकर वे सिसक-सिसककर रो पड़े थे।६ ०... छोदी थी मैं उस समय, पर नारी की सहज ममता ने उम्र उम्र का व्यूवधान,कब माना है। उनके आसू सोख लिये थे मैंने, उतका दई वाट निया धा। तब से उनकी हर व्यथा को अपने सपूर्ण सवेदन के साथ जीने की जैसे भरी आदत हो गयी थी । अधिकार हो गया था । स्वाबपजुमी क्रेज मे: १५




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now