पाषाण युग | Pashan Yug
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ :
3 MB
कुल पृष्ठ :
154
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
Book Removed Due to DMCA
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटी है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मतलब नहीं समझ सकी। पर उनकी आखों की पीडा, उनके स्वर का
यात्सल्य मुझसे छिपा नहीं रहा ।
बह थोड़ी-मी मिठाई लिये मैं प्रतीक्षा मे बठी रही। बहुत रात गये
लौटे थे हरि भैया । आकर छत पर अपने विस्तर पर चुपचाप लेट गये
थे। मैंते दवे पाँव जाकर पेडा उनके मुह मे दूंस दिया घा।
वया है यह ? थे हृडवड़ाऊर उठ बैठे थे।
“मिठाई है ।
गक्रिस बाते की मिठाई ?' उन्होने भरी हुई आवाज़ में पूछा ।
'एक हमारे हरि भंया हैं, उनके पास होने की।” मैंते शरारत से
थार्खें नचाकर कहा ।
कुछ क्षण वे चुप रहे, फिर बोले, “किसने बाटी है ?!
“मौसी ने 7!
मेरे सिर पर हाथ रखकर कहो |
कैसे कहती ! चुप होकर रह गयी।
'बाबूजी ने अपने ठाकुरजी बगे भोग लगाया होगा । ठीक हैन!
अपने नालायक बेटे के पास होने की खुशी सिर्फ वे ही मना सकते हैं।'
और फिर एकाएक उनका चेहरा तमतमा उठा था, 'क्यों आये थे
तुम लोग यहा ! क्या उतने बड़े अफ़ीका में तुम लोगों के लिए जगह नही
थी ! आते ही तुम लोगों ने मेरा घर, मेरी मा, मेरा सुख--सब-कुछ छीन
लिया“**छोटा-सा घर था हमारा । पर उस घर मे मैं राजकुमारों की
तरह पत्ता था । उस समय मेरी हर इच्छा पर अम्मा बिछ-विछ जाती
थी। उस समय मैं उनको आखों का तारा हुआ करता था**ओऔर अब,
अब दुनिया में वस एक ही नाम रह गया है, मनीप-मनीप-मनीप ।
1. और पलंग की पाटी पर सिर रखकर वे सिसक-सिसककर रो पड़े
थे।६ ०...
छोदी थी मैं उस समय, पर नारी की सहज ममता ने उम्र उम्र का
व्यूवधान,कब माना है। उनके आसू सोख लिये थे मैंने, उतका दई वाट
निया धा। तब से उनकी हर व्यथा को अपने सपूर्ण सवेदन के साथ जीने
की जैसे भरी आदत हो गयी थी । अधिकार हो गया था ।
स्वाबपजुमी क्रेज मे: १५
User Reviews
No Reviews | Add Yours...