चरित्र | Charitra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अन्त में लिखा है कि दो-एक दिन में ही आ रहा है वह 1 जगह-जमीन-भाड़े,
जो कुछ ये उसके, सव बेंच चुका है। आकर वह मेरा सब ऋण चुका देगा।
मैंने जब इतने दिन इतजार किया है तो कुछ दिव और कहूं। वर्गरह,
वर्गरह 5
चिट्टी पाकर समझ में नही आया कि क्या करू . बेचू की बात पर यकीन
करूँया न कहूं। वुछ नहीं तय कर पाया) तव सब बस्तुओं पर से मेरा
विश्वास हट गया था।
वास्तव में संसार पर ही मेरी आम्या शिथिल होती जा रही थी क्रमश. ।
मानव-्ममाज से प्रारम्भ करके राष्ट्र, सरकार, कोर्ट-कचहरी, अर्थ, परमार्य-
मव पर से आस्या खो रहा था। लिहाजा इस चिट्टी को भी कोई महत्त्व नहों
दिया मैंने
और हस्वमामूल इसके बाद भी एक साल बीत गया। एक साल और
बीतने को हुआ। इस दरमियान वेचू को स्त्री भी हमारे घर की सदस्य वन
गयी। एक ही चूल्टे पर सबकी रसोई बनने लगी। वच्चों को मुहल्ले के एक
स्कूल मे भरती कर दिया। लेकिन जिस तरह मैं हमेशा से गिरती चलाता
आया हूं, उसी तरह गिरस्ती से अनासकत भी बना रहा हूं 1 कभी मैंने वेचू की
स्त्री को नवुछ कहा, न उससे बुछ पूछा। उसके पत्ति की प्रवंचना के लिए
कभी शोई उल्नाहना भी नहीं दिया।
मैंने पूछा, 'इसके बाद क्या हुआ ?*
भले आदमी बहुत देर में सुना रहे थे यह कहानी1 बोले--देथिए साहब,
बहुत पुराता है यह मेरा लिखने का शौकू। घर में वेंढे-बैंठे वक्त मिलने पर
विभिन्न विपयो पर कहानिया लिखा करता हूं । हालाकि मेरी यहूँ कहानिया
छपती नही है कही भी। छतवाने की कोई खास चेप्डा भी नही करता।
लेकिन जद कभी मौझा मिलता है, इसों सिलसिले में मानव-चरित्र के अध्ययन
की दृष्टि से जगह-जगह घूमता-फिस्ता हूं । पर तव मुझे कहा पता या कि मेरे
घर मे ही कहानी मौजूद है ।
उस दिन जहाज घाट पर भी गया था मानव-चरित्र के अध्ययन की प्रेरणा
से। यहा बेचू को देखकर हैरत में आ गया।
* फिर छलागय मारकर उसके सामने पहुँचकर उसका हाथ पड़ लिया ।
'बेचू !”
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