लापता | Lapata

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Lapata by प्रभाकर माचवे - Prabhakar Machwe

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बिदुर ने आगे कहा कि--”है घृतराष्ट्र, प्राणों की बाजी लगाये दोनों ऋरोष मे प्रक्लाद के पास जा पहुँचे । उन्हे देखकर प्रद्धाद ने मन में सौचा--इन दोनों का जन्म-जन्म का बैर है, इसलिए दोनों एक साथ घूमते हुए कभी दिसाई नहीं देंगे । ऐसा होते हुए आज दोनो एक ही मार्ग से, एक साथ यहां क्‍यों आ रहे है? दोनो सापों की तरह कूद हैं। इसलिए पहले मैं विरोचन से प्रइन करता हु-- वत्म विरोचन, आज तक मैंने तुम दोनों को कभी एक साथ नही देखा । ऐसा होते हुए तुम आज एक साथ कैसे घूम रहे हो ? पुत्र, तेरी इस सुधन्वा ब्राह्मण से मैत्री है चया?” विरोधन--”है यात, इस सुपन्या से मैंने मैत्री नही की। परतु हम दोनो ने प्राणों की वाजी लगाई है और इस प्रइन का निर्णय प्राप्त करने सुम्दारे परम आये हैं । मैं तुम्हें सत्य पूछ रहा हूं, इसलिए तुम असत्य मत बताओ |” प्रह्माद--“है ब्राह्मण, आप मेरे लिए पूज्य हो, अत: प्रषम मेरे इस मधुपर्क को स्वीकार कीजिये !” ऐमा कहकर उसने अपने सेवकों से कहा-- पहले इस सुधन्वा आाह्मण के लिए सधुपर्क और शुश्नवर्ण पुप्ट गी जल्दी ले आओ ।/ यह सुतकर सुधस्वा ने कहा--“हें प्रद्धाद, मार्ग में हमथे तब मधुपर्क ग्रहण किया ही है। अब पहले हम प्रश्न का निर्णय करें, उसी मे सब मधुपर्क मुझे मिल जायेगा। मैं जो प्रघत पूछ रहां हूं इमका सत्य और निश्चित उत्तर दो-वश्राह्मण श्रेष्ठ या विरोचन श्रेष्ठ? यह हमारे विवाद का विपय है ।” प्रल्लाद-- है विप्रपे, विरोचन मेरा अकेला बैटा है और तू साक्षात्‌ ब्राह्मण मेरे सामने है। ऐसे समय तुप दोनों के बाद का निर्णय हम कैसे करें? है भगवान, तुम पृज्य हो। यदि तुम्हारे विरोध में मैं बुछ चोलूंगा नो ब्रह्मढेप का दोप मुझे लगेगा, और विशेचन मेरा पुत्र हीने से उसके विरुद्ध निर्णय देने से पुत्रधात का दोष मुझे लगेगा।” सुधन्वा--/पुत्र वो गाय या दूसरा प्रिय घन दीजिमे, परंतु हे बुढ्धि- सात, हारे विवाद मे आप सध्य वचन ही बोलिये, यही उचित है ।” आधायाावा काका: आप:




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