नाट्यशास्त्रम भाग - 3 | Natya Sastra Bhag - 3

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Natya Sastra Bhag - 3  by बाबूलाल शास्त्री - Babulal Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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9 । रखी जाती है। आचार्य अभिनवगुप्त के बनुसार लक्षण में 'सविस्मभय/ की प्रमुदतता एव भारती बृत्ति के उल्लेख से इसकी प्रहसनता स्पष्ट है। आवचारयें विश्ववाध कविराज ने भाण मे भारती व्‌ृत्ति के अतिरिक्त कैशिकी दृत्ति तथा लास्‍्यागो की योजना को भी स्वोकार करते हुए बतलाया कि वि का वर्णन प्रेमल्ीलासे सम्बद्ध रहने से श्यार रस की इसमे जहाँ रिथति होगी तो बोशिकी वृत्ति अवश्य होगी । इसका हास्यरस प्रमुख अग होता है तपा परवर्ती काल में गीत, वाद्य तथा नृत्य की भी थोजता इसमे रहने लगी थी ! भाण का लक्ष्य दुष्टस्वभाव एव दुश्नरित्र व्यक्तियों के स्वहूपो का उद्धाटन फरना होता है। जिससे सामाजिक एवं सरलस्वभाव के जन इनके प्रभाव से निकल सके। आचार्य अभिनवगुप्त तथा रामचद्ध गुणचर्द् के अनुसार इसके दर्शकों में साधारण जन या मूढ़ प्रकृति के व्यक्ति आते हैं. जो हल्के मनोरजन को पसन्द करते हैं । यही कारण है कि कालान्तर मे यह रूपक अधिक लोकप्रियता को प्राप्त न कर सका । परन्तु यह सामाम्यजन की रजता करने के कारण अवेक रचनाकारों को प्रेरित अवश्य करता रहा है। इसके उदाहरणों मे सर्वे प्राचीन उदाहरण “चतुर्भाणी' है हया उत्तरकालीत अनेक भ्राप्य भाण हैं । पह एक ऐसा ब्यज्जुघ अधान रूपक है जिमतमें हास्य की प्रीठी पुट के साथ शज्ञार मादि रसो का आस्वादन सहृदय जन करते हैं। इसे रूपको का आरम्भक प्रप्नेद भी अनेक समीक्षक मानत हैं। बीथी :---हूपकों में 'वीयी? प्रत्येक रस को प्रकट या प्रस्तुत करने के कारण अपना महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला एकांक रूपक माना जाता है । इसमें तेरह अग॑ या भाग होते हैं तथा एक या दो पात्र होते हैं जो समाज के उच्च, मध्य या विम्व जाति के होते हैं । इससे एक यात्र क रहने पर माण की तर्ह आकाशमभापित शेली या फिर दो पात्रों के रहते पर साटकरीय क्यनोपकषन शैली वी योजना रखी जा सकती है । इसमे तेरह वीघ्यगों वए पपेक्षानुसारी भ्रषोष् क्या जाता है 1 वीयी का तायव तीनो प्रकृठि के हो सकते हैं जो वयावस्तु के अनुरोध पर रहेगें। थाचार्य अभिनवगुप्त ने थी शबुक बे इस मत को मान्य नहीं किया कि बीगे का सायर अधम न हो, क्योकि जहाँ हास्यरस वी सृष्टि होगी तो बघमत्व कँसे रोन्‍य जा सबेगा । इसमें हित) वृद्धि कया सुच्य एव अनुच रमशगार रहता है तथा अन्य सभी रसों को स्पदिता रहती है। वीषी एक ऐश वाटय-मृत्य-प्रशन रूपर है, जहाँ दरों लास्पांगों तथा वीर्यागो वा




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