कठोपनिषद | Kathopanishad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
179
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आकथन
कठापनिषद् कृष्णयजुवंदकी ऋठ्शास्वाके अन्तगंत है। इसमें
यम ओर नखिकेताके संवादरूपल व्रह्मविद्याका बड़ा विद्वाद वणन
किया गया है । इसकी वर्णनदोली वी ही खुबाध और सरत्द है।
शआीमद्ूगवर्हाताम भी इसके कई मन्त्रोंका कही दाब्दतः और कही
अर्थतः उल्लेख है। इसमे, अन्य उपनिषदाकी भाँति जहाँ तस्वज्ञानका
गस्भीर विवेचन है वहाँ नचिकेताका चरित्र पाठकांके सामने एक
अनुपम आदर्श भी उपस्थित करता है। जब वे देखते हैँ कि पिताजी
जीर्ण-शीण गौएँ ता ब्राह्मणोंकों दान कर रहे हैं ओर दूध देनेवाली
पुष्ठ गाये मेरे लिये रख छोड़ी हैं तो बाल्यावस्था हानपर भी उनकी
पितृमक्ति उन्हें चुप नहीं रहन देती और वे वालखुलम चापल्य
प्रदर्शित करते हुए वाजश्रवास पूछ बेठत हैं--तत कस्मे मां
दास्यसि! ( पिताजी ! आप मुझे किसको देंगे ? ) उनका यह प्रश्न
ठीक ही थाः क्योंकि विश्वजित् यागम सबस् दान किया जाता
है, ओर ऐसे सत्पुञ्रका दान किय बिना वह पूर्ण नहीं हा खकता
था) वस्तुतः सर्वेखदान तो तभी हो सकता हैं ज़ब काई वस्तु “अपनी!
न रह और यहाँ अपने पुत्रके माहस ही ब्राह्मणाका निकस्मी
और निरथंक गोएँ दी जा रही थी. अतः इस मोहसे पिताका उद्धार
करना उनके लिये उचित ही था ।
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