मितव्ययता अर्थात गृहप्रबन्ध शास्त्र | Mitvyayata Arthat Grih Prabandh Shastra

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Mitvyayata Arthat Grih Prabandh Shastra by दयाचंद्र गोयलीय - Dayachandra Goyaliya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ मिठव्ययफा अभ्यास 1 रुपया अपने ही लिए खर्च करनेके बदले थोड़े दिनेर्मि कुछ न कुछ दूसरोंके छिए भी जमा हो जायगा । हां, निर्धनसे निर्धन मलुष्यकां यह मुख्य कर्त्तव्य है कि चाहे कितनी ही थोड़ी रकम क्यों न हो किंतु बह अवश्य कुछ न कुछ वचाबे जो आपत्तिकालमें-जिसमें मनुष्य कभी न कभी अचानक फँस ही जाता है,-उसके तथा उसके बुद्धुंवियोकि काम जावे । मिलान करनेसे जान पड़ता है कि घहुत कम आदमी धनत्रान्‌ हो सकते हैं, किन्तु यह शक्ति हरएक आदमीमें है कि श्रम और मितव्य- यसे अपनी जरूरतोंकी प्रा कर सके और इतना रुपया भी जमा कर सके कि जो उसे बुढ़ापेमें निधनताके कष्से बचा सके | मितन्ययर्मे अचसरका न मिलना बाधक नहीं होता किन्तु इढ़ संकल्पका न होना बाघक होता है। मनुष्य ठगातार शारीरिक और मानसिक परिश्रम कर सकते हैं, किन्तु अपवन्यय और अमितव्ययसे जीवन ज्यत्तीत करना नहीं छोड़ते । इच्छाकी वशीमूत्त करनेकी अपेक्षा भोगविरासमें रूना छोग अधिक पसन्द करते हैं। १०० पीछे ९० आदमी इच्छाओंके दास , बने रहते हैं | वे जो कुछ कमाते हैं सब खर्च कर डालते हैं । केबल मजूर और कारीगर छोग ही अपव्ययी नहीं होते किंतु नित्य ही सुननेमें जाता है कि अमुक अमुक मलुष्योंने वर्षोतक सैकड़ों रुपये कमाये और खर्च किये, परंतु जब वे अकाछणृत्युके प्रात हो गये, तब : उन्होंने अपनी संतानके लिए एक कौड़ी भी बाकी न छोड़ी | उनकी मृत्यु परे वही घर जिसमें दे रहते थे और वही सामान-जिससे वह -मकान' सजा । रहता था, दूसरोंके हाथ बिक जाता है | उनकी - विक्रीसे जो रुपया ह ३




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