हमारा समाज | Hamara Samaj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20.79 MB
कुल पष्ठ :
286
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्० भापस में लडने-भिडने लगेंगे रक्त की नदियां वह निकलेंगी नगर उजद जायेंगे ब्यभिचार फैल जायगा रणचण्डी अट्हास करने लगेगी । इस के विपरीत दूसर प्रकार की विचार-धारा प्रचलित कर दीजिए । संसार सुख-झान्ति की पुनीत सुरसरी में स्नान करने लगेगा लोग देश भर जाति को भूलकर भाइं-भाइं की तरदद गले मिलने लगेंगे । इस समय संसार के दूसरे राष्ट्र जहां शख्रास्रकी सद्दायता से विजय प्राप्त करने का यत्न करते ह वढ्दी रूस बिना युद्ध किए केवल विदेष प्रकार के विचार फेलाकर विजय प्राप्त कर रहा है। उस्र ने चीन में अपने विचार फैला कर बहुत से चीनियों को कम्यूनिस्ट बना दिया हें। बे कम्यूनिस्ट अब आप ही अपने दूसर देदा-बंधुओं के साथ लड्-भिड॒ कर रूस के पक्ष में कार्य कर रहे दे । यही दया मलाया ब्रह्मा यनान और जमंनी प्रभृति कई दूसरे देशों की है । भारत में भी रूसी विचारों द्वारा प्रभावित कम्यूनिस्ट यत्र-तत्र उपद्रव मचाने से नद्दीं चूकते । भारत में जितना बड़ा राज्य महाराजा अशोक का हुआ दे उतना बड़ा ब्रिटिश भारत भी नहीं था । वह अराकान से लेकर दिन्दूकुश पवत तक फेला हुआ था । अशोक ने इतना बडा प्रदेश शख्रात्र के बल से नहीं वरन् घर्म के बल से जीता था । उस ने प्रचार द्वारा जनता के विचार बदल दिए थे । अपनी धर्म-विजय के लिए उस ने अपने सारे साम्राज्य में पाघाण-स्तम्भ गड़्वाकर उन पर सदाचार ओर नीति की बातें खुदवाइं थीं । उसके प्रचार का प्रभाव यद्द था कि यद्यपि उस समय भी भाज दी के सदश भारत की सीमाएं खली पडी थीं तो भी किसी विदशी शत्रु को इस देश पर आक्रमण करने का साहस नहीं होता था । अद्योक के घर्मोपदश से जाति-भेद दब गया था ओर समूते राष्ट्र में बंघुता भर एकता का स्वर्गीय भाव जाग उठा था । इस से राष्ट्र इतना सुदढ भोर सबल बन गया था कि किसी को उसकी ओर औख उठा कर देखने का भी साहस न द्ोता था । यह स्वर्णिम काल इस देश में कोई बारह सो वर्ष तक रहा । कहने का तात्पय यद्द कि विचार संसार को पलट सकता हे । इसलिए यदि दम भारत को सुख-समद्धिश्याली देखना चाहते हूं तो दमें यद्दी की प्रजा के विचारों को बदलकर सुधार करना आवश्यक दे । कोइ सरकार डण्डे के बल से यदद काये नहीं कर सकती । यद्द काम प्रचार द्वारा दी संभव हो सकता हे और पुस्तकें प्रचार का एक बहुत उत्तम साधन हैं ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...