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Log by गिरिराज किशोर - Giriraj Kishor

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उतारने लगे | तोवरे उतारने पर, नाक बजाकर घोड़ों ने घुड़-छुड़ो लो तो साईसों के मुंह से आादतन निकल पड़ा 'शावा मेरे शेर |! साईसों के चेहरे पर फिर वही दयनीयता का भाव मूर्तिमान हो उठा । कन्धों पर पड़े साफ़े संभल गये । आँखें मालिको के आने के पहले से ही झुक गयी। गोरे साहबों के पीछे-पीछे कई लोग चल रहे थे। दो गोरे पाँवों में घोड़ी सड़खड़ाहट होने पर भी, सीधे चलने का प्रयत्न कर रहे थे। मेमें किसी बात पर आपस मे हँस रही थी। सताईस लोग अपने को परेड में खड़ा हुआ- सा महसूस कर रहे थे । कारो के पास आने पर उस नये ज्वाइण्ट-मजिस्ट्रेट ने दरवाज़ा खोलने के लिए तैयार हाजीजी को पीछे ढकेलकर स्वये दरवाज़ा खोल दिया। वे लोग जल्दी-जल्दी उन दोनों कारो मे भर गये । एक मिसेद्ध ब्राउन चला रही थी, दूसरी मिस्टर स्मिय । उन सबके चले जाने पर, उस ज्वाइण्ट-मजिस्ट्रेट ने (ब्राउन साहब की ओर से) विजयोत्सव में सम्मिलित होने के लिए सब लोगों को धन्यवाद देते हुए कहा, “वो मस्ट प्रै फ़ॉर दी लाग लाईफ ऑफ़ अवर क्राउन 1” उसप्तके बाद लोग गाड़ियों के हिसाव से बट गये । कुछ लोगो को गाड़ी- बालों ने साथ चलने का निमन्त्रण दिया और कुछ लोगों ते स्वय पूछा, “आप तो घर ही जायेंगे ?” हाँ या ना के बजाय, इस सवाल का जवाब यही दिया, “भाइये, मैं आपको रास्ते में छोड दूंगा ।” बावा के साथ खानवहादुर इकरामुल हक मोर डा. हालदर देठे । मुझे गाड़ी में ही देखकर उन्होंने नत्यी की तरफ देखा, नत्थी ने बच्ची र की ओर । बजीर ने कहा, “गये नहीं सरकार, जिद करने लगे ।” बावा ने जवाब नही दिया, खानबहादुर को ओर देखकर बोले, “तशरीफ ज्ञाइये 1” पहले “खानवहादुर फिर डा. हालदर गाड़ी मे सामने को तरफ बैठे । पीछे की सीट पर मेरे बराबर मे ही बावा बैठ गये | खानवहादुर ने मेरी ठोडी में हाथ लगाते हुए कहा, “वरखुरदार, कभी हमारे ग्रीवद्भाने पर भी तशरीफ़ लाइये।' - है डा. हालदर बीच ही में बोल उठे, “राय शा'व, शाला श्मिथ बडा हरामजादा है, आज कलव में बोरा (बढ) टेनसन क्रियेट कौर दिया ।”




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