पेपर वेट | Pepar Wet

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Pepar Wet by गिरिराज किशोर - Giriraj Kishor

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ই ११ लिए किसने कहा, जाइए यहाँ से /” छेकित उसने कुछ धीमी आवाज में कहां, “किसने कहा या इतने पैंदा करने के लिए ?” अम्मा उत्तकी बात का जवाब देने के बजाय सविता की कुरसी के पास आ छडी हुई। क्षण-भर के लिए सविता का चेहरा हिछे हुए पाती की सतह-सा हौ गया । अम्मा ने उसको ओर एक नर देखा भौर फिर बोलीं, “चछ, ऊपर चल ! पढ़ना ही है तो ऊपर चलकर पढना । इम 'ममय यहाँ नहो बैठते दूंगी । यहाँ अकेली““*” बोलती-बोलती वे रुक गईं। उसकी नाक की दुस्‍्सी सुर्खे हो गई थी ! ठुद्ढी के नौचे का भाग कौप हा था। रुककर बोलो, “अम्मा, जिस तरह की दातें आप कर रही हैं, इस सबका क्‍या उन छोटों-छोटों पर अच्छा असर पड़ेगा ? पूरे साल तो धर का हो काम किया है, फ़रवरी का महीना आ ग्रया 'पद/ या न पद) ! कहिएं किताबों में आग रूगा दूं” अम्मा का पारा चढ़ता जा रहा था। सविता व्रिना ढके बोलती रही, “मैं तो बुरी हैं ही, इत छोटियों को देलिएगा, क्या आध्मान फे तारे तोड़-तोडकर छाती हैं। वह बैचारा रंजी मोट्स-वोट्स लाकर दे देता है, वही आँखों मे लटकता है ! “अच्छा, स्थादा चवड़-दवड़ मत कर, बडा आया बेचारा ! शुरू मे सब बैचारे हो होते हैं। मैं सब जावती हैँ, तुम दोनों कंसे बेचारे हो ! हंसने भी दुनिया देखी है।” . सविता जोर से हँस दी । हंसती हुई ही बोली, “अच्छा वादा, हम भरसे बुरे है, अब तो पीछा छोडिए 1” अम्मा के चेहरे पर कुछ ऐसा भाव आ गया था कि सविता के गाल पर बिना चपत जड़े नहीं मानेंगी। बडे जोर में दोत सविता + सा े रन गमी होकर का, नयेन क्व वहा पा, यते कोने पढ़ने भ, अपने-आप हो तो पहने भेजा! मते दढ कणा होपा हो डे, मे नहीं कर सकती, पत्ता भी नहीं चछेगा । हर शादे जो करती धूम, यहा नही हे सस्ता । মাল ও




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