करुणा की कहानियाँ | Karuna Ki Kahaniyan

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Karuna Ki Kahaniyan  by ठाकुर राजबहादुर सिंह - thakur rajbahaadur singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बुद्ध २५ सारथि ने कहा--“महाराजवुमार, यह एक मृत मनुष्य की अर्थी है।” ' तो फिर मेरा रथ उसके निकट ले चला ।” राजकुमार ने कहा । सारथि आतानुसार र॒य उधर ले गया। मुर्दे को पास से देखकर राजदुमार न पूछा--' सारथि, मृत का अथ क्या होता हक सारधि वाला--“मृत का अथ यह होता हैं हि अब यह मनुष्य अपने माता पिता ओर रिश्ते नात॑वालो की दिखाई नहीं देगा । न वही विसीकोी देख पाएगा ।” राजवुमार--तो क्‍या मेरी भी यही गति होगी ? क्‍या मैं मो राजा रानी, सगे सम्बाघधिया को नहीं दिखाई दूगा और मैं उह नही देख सकूगा ? सारथि न वहा--'नही महाराज ! यही तो मौत है । यह सभीके लिए एक सी है ) अन्त में सभीकी यही गति होनेवाली है 1” “ता फिर बजवे उद्यान में नही चलता है सारथि--रथ अन्त - पुर को वापस ले चलो ।” सारथि ने रथ वापस मोड लिया और महाराजकुमार का अन्त पुर वापस ले गया । महाराजवुमार वहा बडी ही शावपूण मवस्या में देर तक बेचन पड रहे और बन्तत उहामे कहा-- “इस जम भौर जीवन को धिक्ार है जिससे मनुष्य बुढपा, व्याधि और मौत को प्राप्त द्वोता है।” जब राजा शुदोदन ने पहरे ही को तरह इस बार राज-




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