बिना दीवारों के घर | Bina Deevaro Ke Ghar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
0.79 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बिना दोवारों के घर : है
मीना : बेठिए ।
ज़ोजी : 1 देठते हुए) इस समय तो वस से श्राने में प्राण ही निकल
जाते हैं बस
आमा : श्राप दस में घुस कंसे लेती हैं इस समय, मुके तो इसी
में आइचयं होता है । भाप शाम को क्यो नहीं जाती
सत्संग में ।
जीजी : सत्संग में सवेरे न जाने से मुझे लगता है जैसे सारा दिन
दिगड़ मुया । (सोना की शोर) सझाप कलकत्ता तो नही
रहती द्ायद *
'मौना : जी, श्रभी भ्राई हूँ । (उठते हुए) ग्रच्छा, झभी तो
चलूँगी । (शोभा हो) तो मैं दस-साढे दस बजे के बीच
'भ्रजित्त थो फोन अचरूगी ! यो थोड़ी 'मूिता तुम ढाँघ-
कर रखना 1
जयंत : तुम्हें जाना किधर है, मीना ?
भोना : यहाँ से तो चौरंगी ही जाऊंगी 1
सपंत : चलो, हो मैं ठुम्हें छोड़ देता हूँ (शोभा से) भौर हाँ देखो,
मट्दता साइबर एक नोकर भजगे । बात करके देखना ।
भ्रच्छा जीजी, इन्हें जरा छोड़ घाऊँ ।
(नमस्ते करके दोनों चलने सगते हैं । जोजी भीतर
चली जाती हैं ३)
जयंत : तुम्दा री क्लास दितने बजे है ?
होभा : वार से ।
जयंत : हो सका तो मीना वो छोड़कर एक चंकर लगा लूँ ।
साढ़े ग्यारह पर मुकने इघर ही किसी से मिलने जाना है ।
इतेसा : फिर कद था रहो हो, सीना ? भाज के दाने बे हैं
पाना नहीं मानूंगी, समझी ?
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