अग्निरेखा | Agnirekha

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Agnirekha by महादेवी - Mahadevi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है अमा का पर्व इससे दीप्त दोपहरी तुम्हारा” दीप माटी का हमारा! छिल्‍न जीवन-पृष्ठ जिन पर अनलिखी दुछ की कथाएँ, और बिखरे पृष्ठ जिन पर, बोलती सु की प्रथाए, ज्योति-कण से बीन इसमे सब सँजोये, स्वप्न खोये, काल लहरी में उगे जो नये जीवन बीज बोये। बाँच देखो बन गया यह मर्म का छान्‍्दस्‌ तुम्हारा। दीप माटी का हमारा! एक स॑ अब जल उठे टीपर सहस्रो शप क्या है ? आज नौ का माल क्या है ताल क्या है देश क्या है ब्रा टगा यह सभी आलाज जन तन लौट आए क्यारविस प्र मं विष्ठ पह था जरण म मस्थााः आननरखा




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