चोट्टी मुंडा और उसका तीर | Choti Munda Aur Usaka Teer

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Choti Munda Aur Usaka Teer by महाश्वेता देवी - Mahashveta Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तो पुलिस खोज करने के लिए घर पर जा धमकती 1 नर उस समय भी इस रेल-मार्य पर अधिक गाड़ियाँ नहीं चलती थी । आस-पास उस समय भी बहुत घना जयल था। सा रवाडी ठेकेदा रो ने पत्थर तोड मो रम बजरी को चालान करना शुरू नही किया था। जगल विभाग ने साल के पुराने जगल को काटना शुरू नहीं किया था! इसमे जानवर वहुतायत में थे / राजे-्जमीदार भी बहुत-से थे। निजी जगल भी बहुतेरे थे। चोट्टि के तीर चलानामीखनते के कारण हिरन-साही का मांस खूब खाने को मिलता । परमी का ससुर भी खुश था। घाती अब इन लोगो के साथ ही खाता । लेकिन वह भात खाता था । कहता था, “घाटो नही खाऊँगा रे । भग- बान मुडा-दिक्‌ लोगी की तरह भाव खाने के लिए लडे थे। जिन कारणों से लड़ थे, उनमे यह भी एक कारण था ।” जगल के बीच एक छोटी-सी उपत्यका थी। उस पर घास छायी हुई थी। पेड्ो पर धानी चूने से आँख बना देता। चोट्टि तीर चलाता। घानी दूरी वढा देता। कहता, “चोट्टि, जल्दी-जल्दी सीख ले ।” उस दिन दो पेडो के बीच में एक पेड पर वनायी आँख पर चोट्टि ने निशाना लगामा। उस दित धानी बोला, “वस 1 अब रोज अभ्यास करने पर तू घोट्टि मेला मे जरूर जीत जायेगा /” “अब असली विद्या सिखाओं।” “सिखाऊँगा।” 'सिखाऊँगा' कहने के साथ ही घानी मानो क्षण-भर के लिए बदल गया। ज्यों असंभव रूप से वह हजा रो-लाखों बरस का बूढ़ा हो गया । इतनी उम्र हो जाने पर बुढापा खाल से झरने लगता है, उसी तरह जैसे विपाणगढ़ के हिन्दुओ के देवता के मदिर में। साने सो वरस बीत जाने पर भी मद्दिर पर खुदे आदमी-वानर-हाथी-पक्षियो की उम्र बढ़ती नहीं। घानी उस तरह का हो गया ! धीमी आवाज मे जैसे किसी से वोला, “मैं अब अकेला नहीं रह सकता । मेरा समय आ। गया ।” उसके बाद वह पहचाना हुआ धानी हो गया । चोट्टि से बोला, “दो दिन रुक जा | एक काम की वात समझ लूँ ।* “जल्दी करना पडेगा ।” क्यो ?* “होली पास आ रही है । सभी लोग जगल में शिवार सेलेंगे।' “दो दिन बीतने दे । तू जा । मैं थोडा अकेला रह लूं।” “अकेले-अकैले तुम काने लगाकर क्या सुनते हो ?”




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