प्रतिमा - नाटकम | Pratima-natakam

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Pratima-natakam by श्री रामचन्द्र मिश्र - Sri Ramchandra Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अस्तावना श्ज भास के नाटक्-चक्र की कुछ विशेषतायें भास कौ कृति के रूप में प्रसिद्ध नाटक-चक्र में कई एक ऐसी विशेषताये देखी गयी है जो अन्य नाटककारों की कृतिओं में नहीं के वरावर हैं और जिनके आधार पर यह भी प्रमाणित होता है कि नाटक-चक्र एक नाटककार की रचना है। विशेषताओं में कतिपय | झुख्य विश्वेपतायें ये हैं :-- (के ) नाव्य-रचना सम्बन्धी ससानता भास के नाठक-चक्र में प्रत्येक नाथ्क 'नान्चन्ते ततः प्रविशति सृत्रवारः? इस निर्देश: ते आरम्भ होते हैं जब कि कालिदास आदि के नाटकों में सुत्रधार के नान्दी पाठ के वाद 'नान्चन्ते-यह निर्देश रहा करता है। भास अपने नाटकों के प्रारम्भ को स्थापना? इस पारिभाषिक शब्द से सूचित किया. करते हैं जव कि अन्य नाटककार अपने नाटकों के प्रारम्भ को 'प्रस्तावना? कहा करते है ! भास के नाटकों की स्थापना? में नाटक अथवा नाथ्ककार का नाम नहीं दिया गया जबः कि और नाटकों में नाटक और नाटककार का नाम-निर्देश 'प्रस्तावना? के आवश्यक अंग' रूप से दिया गया है। भास के नाटकों की 'प्रशस्ति? ( अन्तमद्ल ) प्रायः यही उत्ति हैः-- “(माँ सागरपर्यन्तां हिमवद्धिन्ध्यकुण्डलाम्‌ महीमेकातपत्नाह्मों रानसिहः अशास्तु नः ॥! जब कि अन्य: संस्कृत नाटकों में एक ही नाटककार अपने भिन्न २ नाटकों के लिये. भिन्न २ 'प्रशस्ति? का नियम रखता रहा है। भास के नाटकों की स्थापना? में यह संकेत प्रायः सर्वत्र दिखाई देता हैः-- 'ुवमार्यमिश्रान्‌ विज्ञापपासि। अथे कि नु सयि चिज्ञापनव्यग्रे शब्द इंच: श्रुयते | अज्ञ पश्यामि 1 ( ख ) भरतनाव्यशाश्रभिन्न नाव्य-परम्परा भास की नाव्य-परम्परा वही नहीं है जो कालिदास आदि की है । भास-डी नाट्य- परम्परा के सम्बन्ध में डाक्टर विंटर॒निटज को इसी लिये यह उक्ति हैः-- 4५ पफ्ढ छी9ए8 ० 81859 ) देाकढटुआते क6 #परौ€8 60 क6 गए 18979 1७ गर्ग 500068 01 6 अंबठ९ जमा जय मढएरए 0007 उस ठ88910क], 6787793.? जिसका तात्पय यह है कि नाव्य के वे नियम जो संस्कृत नाटकों में पाले गये ,दिखायी देते हैं! भासकृत नाटकों में नहीं दिखाई देते। भास के नाटक तो नाव्यशासत्र दी मर्यादा से मिन्न नाव्य-मर्योदा का अनुसरण किया करते हैं | प्रतिमानाटक (२ य अद्ू ), में रज्ममद्न पर दशरथ की सृत्यु, उरुमज्! (२य अछद्डू) में दुर्योवन की रह्नमत्र पर सृत्यु, 'स्वप्नवासवदत्त! (५ म जब) में रक्नमन्न पर निद्रा आदि २ वातें ऐसी हैं जोः भरतनाथ्यशास्र की अभिनय-परम्परा के सवा प्रतिकूल हैं ।




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