संस्कृत साहित्य की रूपरेखा | Sanskrit Sahity Ki Rup Rekha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घूमिका किसी राष्ट्र या जाति का वास्तविक इतिहास उसका साहित्य है। साहित्य ही समाज की तत्तत्कालीत चित्ताओं, धारणाओं, भावनाओं, आकांक्षाओं और आदर्शों का समुचित चित्र हमारे सम्मुख उपस्थित करता है। इस दृष्टि से संस्कृत साहित्य भ्रारत के गौरवमय भठीत का मणिमय मुकुट है । प्राधीन भारत के सांस्कृतिक उत्कर्ष का जैसा संजीव प्रतिबिम्ब संस्कृत के सर्वाज़सुन्दर साहित्य में उपलब्ध होता है, वैसा अन्य दुर्लभ है । ऐसा महत्वमय 'अमर-भारती” के प्रति आज जो उपेक्षा अर्थात्‌ औदासीव्य' की भावना हमारे नव्य सभ्य समाज में देख पड़ती है, वह इस पृण्यभूमि भारत के भव्य भविष्य के लिए कदापि उत्कर्ष-विधायक नहीं । क्‍या यह हमारे लिए खेद या परिताप की बात नहीं कि हमारे देश की इस सांस्कृतिक देववाणी' के साहित्य का सांगोपांग विवेचन विदेशीय विद्वानों द्वारा तो किया जाय, किन्तु यहाँ घर में ही 'दोपक तले अंप्रेरा' वाली उक्ति चरितार्थ हो? संस्कृत पठन-पाठन की जो शेली हमारी पाठ- शालाओं में प्रचलित है, उसमे साहित्य की गहराई तो नापी जाती है, किन्तु व्युत्पत्ति के प्रसार पर कम ध्यान दिया जाता है। हमें यह ने भूलब्रा चाहिए कि यदि मिधा' का विकास पांडित्य है, तो प्रज्ञा का प्रकाश व्युत्पत्ति है। संस्कृत साहित्य के इतिहाद का अनुशीलन अपनी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का अनुशीलन है। हमारी राष्ट्र- भाषा हिन्दी में भी अपनी प्राचीन परम्परागत संस्कृति से अप्ररिचित था अल्प-परिचित रहकर अपने समुचित विकास का आदर्श नहीं निर्धारित कर सकती । संस्कृत साहित्य का इतिहास लिखाने की परिपाटी का श्रीगणेश पाश्चात्य बिद्वानों ने किया । विदेशी भाषाओं में--मुख्यतः जर्मन और अंग्रेजी में---इस विषय पर अनेक ग्रन्थ लिखे गये हैं। भारतीय विद्वानों ने भी संस्कृत साहित्य के विषय में प्रायः अंग्रेजी में ही विवेचन किया है। इधर हाल में हिन्दी में भी संस्कृत साहित्य के इतिहास पर दो-चार छोटो-मोटी पुस्तकें प्रकाशित हुईं, किन्तु वे या तो एकदेशीय हैं अथवा परिचयात्मक मात । उनमें से कुछ तो ऐसी है जो पाश्चात्य विद्वानों की कृतियों के अनुकरण पर ही लिखी गई हैं-- उनमें एकमाल पाश्चात्य दृष्टिकोण का ही अनुसरण किया गया है, और कुछ ऐसी हैं जिनमें वैदिक लौकिक समग्र संस्कृत साहित्य का समावेश होने के कारण कवियों अथवा क॒तियों का विशद विश्लेषणात्मक विवेचन नही हो पाया है । प्रस्तुत पुस्तक वेदोत्तरकालीन (0195 ८७1) संस्कृत साहित्य का संक्षिप्त समी* क्षात्मक अध्ययन अथवा इतिहास है। इसमें संस्कृत वाडः मय के उन प्रमुख अंगों का




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